वैवाहिक विवाद में पति के संबंधियों को आईपीसी की धारा 498A में फंसाने की प्रवृत्ति : दिल्ली हाईकोर्ट

वैवाहिक विवाद में पति के संबंधियों को आईपीसी की धारा 498A में फंसाने की प्रवृत्ति : दिल्ली हाईकोर्ट

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  • June 3, 2023
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दिल्ली हाई कोर्ट ने हाल ही में पुलिस विभाग में एक अभ्यर्थी की लंबित नियुक्ति के मामले महत्वपूर्ण टिप्पणी की है।

कोर्ट ने अभ्यर्थी की पुलिस विभाग में तत्काल सब इंस्पेक्टर के पद पर नियुक्ति की बहाली का आदेश देते हुए कहा कि एफआईआर में मात्र किसी व्यक्ति का नाम आ जाने को सार्वजनिक पद पर नियुक्ति के लिए बाधा नहीं माना जा सकता है। विशेष रूप से वैवाहिक अपराधों के मामलों में जब तक कि जांच द्वारा उसकी अपराध में भागेदारी प्रमाणित न हो जाए।

जस्टिस वी कामेश्वर राव और जस्टिस अनूप कुमार मेंदीरत्ता की खंड पीठ ने यह आदेश एक याचिका की सुनवाई करते हुए दिया।

याची के खिलाफ उसकी भाभी ने वैवाहिक विवाद में आईपीसी की धारा 498A के तहत मुकदमा कर रखा था।

एफआईआर में याची का नाम होने के कारण पुलिस विभाग में सब इंस्पेक्टर के पद पर याची की नियुक्ति को टाल रखा था जबकि इस पद के लिए आवश्यक सभी परीक्षाएं पास कर लेने के बाद कर्मचारी चयन आयोग द्वारा अंतिम परिणाम घोषित होने पर याची को सत्यापन के अधीन सब इंस्पेक्टर के पद पर नियुक्ति देने की सिफारिश की गई थी।

सत्यापन के दौरान दिल्ली पुलिस को याची ने पूर्वोक्त एफआईआर के बारे में बताया था जिसके बाद विभाग ने याची की नियुक्ति को उसके खिलाफ आपराधिक मामले के अंतिम निर्णय तक लंबित रखने का फैसला लिया था।

कोर्ट ने माना कि इस मामले में आरोप पत्र पर संज्ञान लेते समय निचली अदालत ने याची को तलब करना उचित नहीं समझा इस लिए याची की नियुक्ति को मात्र इस आधार पर लंबित नहीं रखा जा सकता कि उसका नाम एफआईआर में है विशेष रूप से वैवाहिक मामलों में जब तक कि उसकी अपराध में भागेदारी प्रमाणित नहीं हो जाती।

कोर्ट ने कहा कि “महिलाओं में वैवाहिक विवादों के संदर्भ में प्राथमिकी दर्ज होने की स्थिति में नाबालिगों सहित सभी रिश्तेदारों को शामिल करने की प्रवृत्ति बढ़ रही है। ऐसी कई शिकायतें अंततः परिवारों / पति-पत्नी के बीच सुलझा ली जाती हैं और बाद में कहा जाता है कि उत्तेजित हो कर तुच्छ मुद्दों पर दायर की गई थीं। पूर्वोक्त प्रावधान का दुरुपयोग काफी हद तक देखा गया है, हालांकि अधिनियमन के हितकारी उद्देश्य को किसी भी तरह से नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। केवल एफआईआर में नाम दर्ज कराने से यह निष्कर्ष नहीं निकलता है कि नियोक्ता अनिश्चित काल के लिए आवेदक के रोजगार को स्थगित कर सकता है।”

कोर्ट ने माना कि केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण ने मामले में याची की संलिप्तता स्थापित करने के लिए कोई साक्ष्य न होने के बावजूद उसे कोई रहत नहीं दी।

कोर्ट ने मामले के तथ्यों पर विचार के बाद याची की नियुक्ति को लंबित रखने वाले आदेश को रद्द कर उसे संबंधित पद पर नियुक्ति दिए जाने का आदेश दिया।

केस : विक्रम राहुल बनाम दिल्ली पुलिस (W.P.(C) 5718/2023)

पूरा आदेश यहाँ पढ़ें –

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