विवाह के 7 साल के भीतर वैवाहिक घर में मौत हो जाना आईपीसी की धारा 304B और 498A के तहत आरोपी को दोषी ठहराने के लिए प्रयाप्त नहीं: सुप्रीम कोर्ट

विवाह के 7 साल के भीतर वैवाहिक घर में मौत हो जाना आईपीसी की धारा 304B और 498A के तहत आरोपी को दोषी ठहराने के लिए प्रयाप्त नहीं: सुप्रीम कोर्ट

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  • April 26, 2023
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सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण आदेश में माना है कि विवाह के 7 साल के भीतर वैवाहिक घर में मौत हो जाना आईपीसी की धारा 304B और 498 A के तहत आरोपी को दोषी ठहराने के लिए प्रयाप्त नहीं है।

जस्टिस राजेश बिंदल की पीठ ने उत्तराखंड हाईकोर्ट की नैनीताल पीठ के आदेश को रद्द करने का आदेश दिया है।

इस मामले में मृतिका पत्नी के पति ने सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर कर आईपीसी की धारा 304B, 498A और 201 के तहत दोषसिद्धि को चुनौती दी थी।

आवेदक पति को निचली अदालत ने दोषी ठहराते हुए आईपीसी की धारा 304B के तहत 10 साल की कठोर कारावास, 498A और 201 के तहत 2- 2 साल की सजा सुनाई थी। बाद में उत्तराखंड हाईकोर्ट ने धारा 304B के तहत आवेदक पति की सजा को 10 साल से कम कर 7 साल कर दिया था।

क्या है मामला?

इस मामले में मृतिका पत्नी का विवाह आवेदक पति के साथ 1993 में हुआ था। मृतिका पत्नी अपने वैवाहिक घर में रह रही थी। 24 जून 1995 को मृतिका पत्नी के पिता ने शिकायत दर्ज कराई थी। उसका कहना था कि उसकी बेटी का विवाह आवेदक के साथ हुआ था। हैसियत के हिसाब से दहेज दिया गया था। लेकिन विवाह के कुछ महीनो बाद ही जब उसकी बेटी अपने मायके आई तो उसने ससुराल वालो की ओर से लगातार दहेज की मांग के बारे मे बताया था। फिर 23 जून 1995 को पता चला कि उनकी बेटी की 1 दिन पहले हत्या हो गई है और शिकायतकर्ता को सूचित किये बिना मृतिका का अंतिम संस्कार कर दिया गया है।

निचली अदालत ने साक्ष्यों के आधार पर आवेदक, उसके भाई और माँ को आईपीसी की धारा 304B, 498A, और 201 के तहत दोषी पाए जाने पर कठोर कारावास की सजा सुनाई थी।

दोषियों की अपील पर हाईकोर्ट ने आवेदक पति के भाई और माँ को दोषमुक्त करते हुए बरी कर दिया था जबकि आवेदक पति की 10 साल की सजा को कम कर के 7 साल कर दिया था।

आवेदक पक्ष का कहना था कि आईपीसी की धारा 304B के तहत अनुमान लगाने के लिए आवश्यक शर्तें यह है कि मृत्यु से ठीक पहले, मृतक को दहेज की मांग के लिए या उसके संबंध में क्रूरता या उत्पीड़न के अधीन किया गया हो।

दूसरी ओर अभियोजन पक्ष का तर्क था कि यह एक ऐसा मामला है जिसमें विवाह के 2 साल के भीतर युवती को उसके ससुराल वालों ने दहेज की लालसा में मार डाला था और मौत अस्वाभाविक थी।

अभियोजन पक्ष का यह भी तर्क था युवती की मौत वैवाहिक घर मे हुई है। अभियोजन पक्ष द्वारा पेश किये गए गवाहों के बयानों के रूप मे इस बात के प्रयाप्त प्रमाण हैं कि आवेदक की ओर से लगातार दहेज की मांग की जा रही थी।

कोर्ट ने अपने आदेश मे माना कि इस मामले मे किसी भी गवाह की ओर से इस बात की पृष्टि नहीं की गई है कि मृतिका पत्नी को आवेदक पति या उसके किसी अन्य पारिवारिक सदस्य द्वारा मौत से ठीक पहले दहेज के लिए प्रताणित किया गया था।

इसके अतिरिक्त कोर्ट ने अपने आदेश मे माना कि अभियोजन पक्ष द्वारा पेश किये गए साक्ष्य आईपीसी की धारा 304B और भारतीय साक्ष्य अधिनियम (IEA) की धारा 113B के तहत अनुमान लगाने के लिए पूर्व-आवश्यकताओं को पूरा नहीं करते हैं। यहां तक ​​कि आईपीसी की धारा 498A के तत्व भी नहीं हैं क्योंकि मृतिका की मृत्यु से ठीक पहले उसके साथ क्रूरता और उत्पीड़न का कोई सबूत नहीं है।

कोर्ट ने माना कि आईपीसी की धारा 304B और भारतीय साक्ष्य अधिनियम (आईइए) की धारा 113B के अनुमानों के लिए पूर्व आवश्यकताओं के बिना आवेदक की दोषसिद्धि को उचित नहीं ठहराया जा सकता है। इस लिए मात्र सात साल के भीतर मृतिका पत्नी की अपने वैवाहिक घर मे अस्वाभाविक मौत आवेदक को आईपीसी की धारा 304बी के तहत दोषी ठहराए जाने के लिए प्रयाप्त नहीं है।

Case : Charan Singh Vs State Of Uttarakhand Criminal Appeal No 447 of 2012

पूरा आदेश यहाँ पढ़ें :

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