समलैंगिक विवाह का मामला:विवाह सिर्फ वैधानिक मान्यता नहीं बलकि संवैधानिक संरक्षण का भी हक़दार: सुप्रीम कोर्ट
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- May 10, 2023
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सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिक विवाह को क़ानूनी वैधता दिए जाने के लिए दायर याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए कहा है कि विवाह केवल एक वैधानिक अधिकार ही नहीं बलकि एक संवैधानिक अधिकार है।
सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली 5 जजों की संविधानिक पीठ समलैंगिक विवाह को क़ानूनी मान्यता देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है।
मंगलवार को इस मामले की सुनवाई करते हुए चीफ जस्टिस ने कहा कि “यह कहना कि विवाह का अधिकार एक संवैधानिक अधिकार नहीं है दूर की कौड़ी है। विवाह के मूल्य तत्वों को देखिए इन्हें संवैधानिक मूल्यों द्वारा संरक्षित किया गया है। विवाह दो व्यक्तियों को एक साथ रहने का अधिकार देता है। संतानोत्पत्ति विवाह का एक महत्वपूर्ण पहलु है लेकिन लेकिन यह विवाह की वैधता की शर्त नहीं है। विवाह को नियंत्रित करने में राज्य का एक वैध हित है। इस लिए हमें यह मान लेना चाहिए कि विवाह संवैधानिक संरक्षण का हकदार है न कि केवल वैधानिक मान्यता का। “
चीफ जस्टिस ने कहा कि कोर्ट को इस बात पर विचार करना है कि क्या विषमलैंगिकता विवाह का मूल तत्व है।
पीठ के समक्ष मध्यप्रदेश की ओर से सीनियर अधिवक्ता राकेश दिवेदी ने समलैंगिक विवाह को मूल अधिकार की मान्यता के खिलाफ तर्क दिया।
दिवेदी ने कहा कि ऐसे मामले विधायिका के क्षेत्र से संबंधित हैं जिन्हें न्यायालयों द्वारा नहीं निपटाया जा सकता है।
अपनी प्रस्तुति में दिवेदी ने कहा कि “यदि विवाह को एक तरल अवधारणा के रूप में माना जाता है तो किसी क़ानून की आवश्यकता नहीं है, फिर भाई बहन भी विवाह करना चाहेंगे विवाह को इतना तरल और अपरिभाषित नहीं बनाया जासकता। विवाह एक सामाजिक उद्देश्य के लिए, एक स्त्री और एक पुरुष का मिलन है संतानोत्पत्ति बनाए रखने के लिए।
पीठ ने जातिवाद और छुआछूत जैसे मामलों के उदहारण का हवाला देते हुए कहा कि संविधान कई मामलों में एक परंपरा तोड़ने वाला है।
ग़ौरतलब है कि समलैंगिक विवाह को क़ानूनी वैधता दिए जाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में 15 याचिकाएं दायर की गई हैं। जिन याचिकाओं पर 5 जजों की संविधान पीठ सुनवाई कर रही है।
आज सुनवाई का नौवां दिन है और याचिकाओं पर सुनवाई जारी है।