‘दोषी आपराधिक मानसिकता का नहीं’ सुप्रीम कोर्ट ने मृत्यु दंड कम कर किया आजीवन कारावास
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- April 29, 2023
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सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को हत्या के एक दोषी की मौत की सजा को कम कर आजीवन कारावास करने का आदेश पारित किया है।
सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संजय करोल की पीठ ने यह आदेश हत्या से जुड़े एक मामले की सुनवाई करते हुए पारित किया है।
इस मामले में अपीलकर्ता दिगम्बर ने सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर कर बॉम्बे हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती दी थी।
क्या है मामला ?
बॉम्बे हाईकोर्ट की औरंगाबाद पीठ ने 13 दिसंबर 2021 में अपीलकर्ता को अपनी विवाहित बहन और उसके दोस्त की हत्या का दोषी ठहराते हुए आईपीसी की धाराओं 302 व 34 के तहत मृत्यु दंड देने का आदेश पारित किया था।
ग़ौरतलब है कि अपीलकर्ता दिगंबर की बहन पूजा का विवाह 10 जून 2017 को हुआ था। 22 जुलाई 2017 को पूजा बिना किसी को बताए अपने वैवाहिक घर से लापता हो गई थी। पूजा 5 साल से गोविन्द नाम के व्यक्ति के साथ प्रेम प्रसंग में थी जिसे पूजा का भाई अपीलकर्ता दिगंबर जानता था। जब पूजा अपने वैवाहिक घर से लापता हुई तो दिगंबर ने गोविन्द से पूजा के बारे मे पूछा था लेकिन गोविन्द ने अनभिज्ञता जताई थी। उसके बाद दिगंबर ने पूजा को काफी तलाश किया लेकिन वह नहीं मिली।
23 जुलाई को दिगंबर जब गोविन्द की बहन के घर गया तो वहां उसकी बहन पूजा और गोविन्द मौजूद थे।
दिगंबर,पूजा को समझा बुझा कर घर ले जाना चाहता था लेकिन वह गोविन्द के बिना जाने को तैयार न थी। फिर दिगंबर, दोनों को साथ ले जाने को तैयार हो गया। लेकिन रास्ते में दिगंबर और इस मामले में सह आरोपी मोहन ने पूजा और गोविन्द की हत्या कर दी थी।
गोविन्द ने स्वंय भोकर पुलिस स्टेशन जाकर अपने इस अपराध का मामला दर्ज कराया था।
निचली अदालत ने ट्रायल के बाद आईपीसी की धाराओं 302, 201, 120B के तहत अपीलकर्ता दिगंबर को दोषी पाए जाने पर मृत्यु दंड दिया था। साथ ही सह आरोपी मोहन को आईपीसी की धाराओं 302, 201, 120B और 34 के तहत दोषी पाए जाने पर आजीवन कारावास की सजा दी थी।
निचली अदालत के आदेश की बाद में हाई कोर्ट ने पुष्टि की थी।
अपीलकर्ता का पक्ष था कि न्यायिकेत्तर स्वीकारोक्ति के अलावा, अपीलकर्ताओं को दोषी ठहराने के लिए कोई सबूत नहीं है।
अपीलकर्ता का तर्क था कि इस मामले को मृत्यु दंड देने के लिए दुर्लभतम श्रेणी का मामला नहीं माना जा सकता है।
अभियोजन पक्ष का तर्क था कि यह ऑनर किलिंग का मामला है। अपीलकर्ता को पता था कि उसकी बहन का मृतक गोविन्द के साथ प्रेम प्रसंग है जिसका उसने विरोध किया था और इसी कारण उसने हत्या की थी।
कोर्ट ने स्टेट ऑफ़ उत्तरप्रदेश बनाम कृष्णा मास्टर व अन्य, गांदी डोड्डाबासप्पा उर्फ़ गाँधी बसवराज बनाम स्टेट ऑफ़ कर्नाटक के मामले में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का हवाला देते हुए माना कि यह मामला अपराध की दुर्लभतम श्रेणी में नहीं आता है।
कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा सुंदर उर्फ़ सुंदर राजन बनाम स्टेट इंस्पेक्टर ऑफ़ पुलिस द्वारा के मामले में दिए निर्णय का हवाला दिया जिसके अनुसार दुर्लभतम सिद्धांत के लिए आवश्यक नहीं है कि ऐसे मामलों में मृत्यु दंड ही दिया जाए।
कोर्ट ने माना कि इस मामले में दोनों अपीलकर्ता का कोई आपराधिक इतिहास नहीं है। घटना के समय अपीलकर्ता दिगंबर जिसे मृत्यु दंड दिया गया है 25 साल का एक युवा था।
कोर्ट ने माना कि मेडिकल साक्ष्य से पता चलता है कि अपीलकर्ताओं ने कोई क्रूरता नहीं की है क्यूंकि दोनों मृतकों को केवल एक ही चोट लगी है।
कोर्ट ने अपीलकर्ता को आपराधिक मानसिकता और आपराधिक रिकॉर्ड का व्यक्ति न पाते हुए माना कि इस मामले को ‘दुर्लभतम मामला’ नहीं माना जा सकता है।
कोर्ट ने कहा कि निचली अदालत के साथ साथ हाईकोर्ट का इस मालमे को ‘दुर्लभतम मामले’ की श्रेणी में निर्धारित कर मृत्यु दंड के आदेश पारित करने में त्रुटि है।
कोर्ट ने अपीलकर्ता दिगंबर को आईपीसी की धाराओं 302, 201 और 120B के तहत दोषसिद्धि को बरक़रार रखते हुए उसकी मृत्यु दंड की सजा को कम कर आजीवन कारावास करने का आदेश पारित किया।
केस : दिगंबर बनाम स्टेट ऑफ़ महाराष्ट्र ( क्रिमिनल अपील न. 221 – 222 / 2022 )
पूरा आदेश यहाँ पढ़ें :