चेक बाउंस: जारीकर्ता द्वारा कुछ भुगतान करने पर नहीं बनता धारा 138 का केस: सुप्रीम कोर्ट

चेक बाउंस: जारीकर्ता द्वारा कुछ भुगतान करने पर नहीं बनता धारा 138 का केस: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में चेक बाउंस के एक मामले में महत्वपूर्ण निर्णय दिया है।

शीर्ष न्यायालय ने कहा कि एक चेक केवल तभी अनादरित होता है जब वह अपनी परिपक्वता या प्रस्तुति की तिथि पर “कानूनी रूप से लागू करने योग्य ऋण” का प्रतिनिधित्व करता है।

जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस हिमा कोहली की पीठ ने मामले से संबंधित कानून “नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट” की धारा 138 की व्याख्या करते हुए कहा कि “नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट की धारा 138 के तहत अपराध के कमीशन के लिए जिस चेक का अनादर किया जाता है, उसे परिपक्वता या प्रस्तुति की तिथि पर कानूनी रूप से लागू करने योग्य ऋण का प्रतिनिधित्व करना चाहिए।

दरअसल, कोर्ट एक ऐसे मामले में सुनवाई कर रहा था जिसमे चेक जारी करते समय कुछ रुपयों का भुगतान कर दिया गया था। लेकिन प्राप्तकर्ता ने चेक में वर्णित पूरी राशि के भुगतान के लिए चेक बाउंस का मामला कोर्ट में दायर कर दिया था।

इस मामले में निचली अदालत और बाद में मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने चेक जारी करने वाले के खिलाफ धारा 138 के तहत आदेश जारी कर दिए थे।
कोर्ट ने इसे आंशिक भुगतान का मामला मानते हुए कहा कि यदि चेक जारी करने वाला चेक जारी करने और उसे कैश करने की अवधि में कुछ या चेक में वर्णित पूरी राशि का भुगतान कर देता है तो परिपक्वता की तिथि पर “कानूनी रूप से लागू करने योग्य ऋण” चेक में वर्णित राशि नहीं होता है।

कोर्ट ने माना कि जितनी राशि का चेक जारी हुआ है उसमे से कुछ का भुगतान हो चुका है तो पूरी राशि के भुगतान के लिए धारा 138 के तहत मामला कैसे चल सकता है ? इसमें धारा 138 को वैधानिक नहीं माना जा सकता है।

क्या है नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट, 1881 की धारा 138 का प्रावधान ?
खातों में अपर्याप्त निधियों अदि के कारण चेक का अनादरण – जहां कसी व्यक्ति द्वारा किसी ऋण या अन्य दायित्व
के पूणत: या भागत: उन्मोचन के लिए किसी बैंककार के पास अपने द्वारा रखे गए खाते में से कसी अन्य व्यक्ति को कसी धनरािश के
संदाय के लिए लिखा गया कोई चेक बैंक द्वारा संदाय कए बिना या तो इस कारण लौटा दिया जाता है कि उस खाते में जमा धनराशि
उस चेक का आदरण करने के लिए अपर्याप्त है या वह उस रकम से अधिक है जिसका बैंक के साथ किये गए करार द्वारा उस खाते में से
संदाय करने का ठहराव किया गया है, वहां ऐसे व्यक्ति के बारे में यह समझा जाएगा कि उसने अपराध किया है और वह, इस
अधिनियम के किसी अन्य उपबंध पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, कारावास से,जिसकी अवधि[दो वर्ष] तक की हो सकेगी या जुर्माने
से, जो चेक की रकम का दुगुना तक हो सकेगा, या दोनों से, दंडनीय होगा :

परन्तु इस धारा में अंतव्रिष्ट कोई बात तब तक लागू नही होगी जब तक –

(क) वह चेक उसके,लिखे जाने की तारीख से छह मास की अवधि के भीतर या उसकी विधिमान्यता की अवधि के
भीतर जो भी पूर्वतर हो, बैंक को प्रस्तुत न किया गया हो;

(ख) चेक का पानेवाला या धारक, सम्यक अनुक्रम में चेक के लेखीवाल को, असंदत चेक के लौटाए जाने की बाबत
बैंक से उसे सूचना की प्राप्ति के [तीस दन] के भीतर,लिखित रूप में सूचना देकर उक्त धनरािश के संदाय के लिए मांग नही
करता है; और

(ग) ऐसे चेक का लेखीवाल, चेक के पाने वाले को या धारक को उक्त सूचना की प्राप्ति के पंद्रह दिन के भीतर उक्त
धनरािश का संदाय सम्यक अनुक्रम में करने में असफल नही रहता है ।

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