पीड़ित या उसके सगे परिजनो द्वारा ही की जा सकती है धर्मांतरण की शिकायत, मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने धर्मांतरण के आरोपियों को दी अग्रिम ज़मानत
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- June 25, 2023
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मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने हाल ही में धर्मांतरण से जुड़े एक मामले में महत्वपूर्ण फैसला दिया है।
कोर्ट ने कहा है कि ऐसे मामलो में पीड़ित या उसके परिजनों की ओर से शिकायत दर्ज कराए जाने के बाद ही कार्रवाई की जा सकती है।
अपने आदेश में कोर्ट ने कहा कि धर्मांतरण से जुड़े मामलों में पुलिस पीड़ित और उसके परिजनों की शिकायत के आधार पर या फिर कोर्ट के निर्देश पर ही आरोपियों के खिलाफ कोई मामला दर्ज करेगी। ऐसे मामलों में पुलिस अपने मन से कार्रवाई नहीं कर सकती है।
मध्य प्रदेश हाई कोर्ट की जबलपुर पीठ में जस्टिस विशाल धगट की पीठ ने आर्कबिशप जेराल्ड अलमेडा और नन सिस्टर लिजी जोसेफ की अग्रिम ज़मानत याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि ” वर्तमान मामले में शिकायत निरीक्षण करने वाले एक व्यक्ति द्वारा दर्ज कराई गई है। धर्मांतरित व्यक्ति या पीड़ित व्यक्ति या जिसके विरुद्ध धर्म परिवर्तन का प्रयास किया गया है या उनके रिश्तेदारों या रक्त संबंधियों द्वारा कोई शिकायत नहीं की गई है। ऐसी लिखित शिकायत के अभाव में पुलिस के पास (मध्य प्रदेश धार्मिक स्वतंत्रता) 2021 के अधिनियम की धारा 3 के तहत किए गए अपराध की जांच करने का कोई अधिकार क्षेत्र नहीं है।”
इस मामले में मध्य प्रदेश के कटनी ज़िले में आशा किरण बालगृह की सिस्टर लीसी जोसफ और जबलपुर के आर्कबिशप जेराल्ड अल्मेडा के खिलाफ मध्यप्रदेश धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम 2021 (MP Freedom of Religion Act) और किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015 (Juvenile Justice (Care and Protection of Children) Act) के तहत अपराध का मामला दर्ज किया गया था।
आरोपियों ने कोर्ट के समक्ष अग्रिम ज़मानत के लिए अपील दायर की थी।
दरअसल नेशनल कमीशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ चाइल्ड राइट्स के अध्यक्ष प्रियंक कानूनगो की शिकायत पर यह मामला दर्ज किया गया था।
कानूनगो 29 मई को निरक्षण के लिए आशा किरण बालगृह पहुंचे थे। उन्होंने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई थी कि बालगृह में बच्चों को जबरन ईसाई धर्म के अनुसार प्रार्थना करने और बाइबल पढ़ने पर मजबूर किया जाता है और उन्हें दीपावली मनाने से रोका जाता है।
अपीलकर्ताओं की ओर से कोर्ट के समक्ष प्रस्तुति में कहा गया कि उन्हें इस मामले में झूठा फसाया गया है और वे निर्दोष हैं। उनके वकील का तर्क था कि बालगृह का निरक्षण किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015 की धारा 54 के तहत दिए गए प्रावधानों के विपरीत कानूनगो ने व्यक्तिगत रूप से किया था।
अपीलकर्ताओं का तर्क था कि मध्यप्रदेश धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम 2021 की धारा 4 के अनुसार पुलिस ऐसे मामलों में दर्ज शिकायत की जांच तब ही कर सकती है जबकि पीड़ित या उसके परिजनों की ओर से मामला दर्ज कराया गया हो। पुलिस द्वारा इस मामले में अपीलकर्ताओं के खिलाफ एफ आई आर दर्ज करने और मामले की जांच करने में एक त्रुटि हुई है और यह कि अपीलकर्ताओं ने किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015 की धारा 75 के तहत कोई अपराध नहीं किया है।
वहीँ राज्य की और से अपीलकर्ताओं की अग्रिम ज़मानत याचिका का यह कह कर विरोध किया गया कि अपीलकर्ताओं का कार्य मध्यप्रदेश धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम 2021 की धारा 3 के तहत आता है। बालगृह के बच्चों द्वारा दिए गए बयान से स्पष्ट है कि बच्चों के धर्मांतरण का प्रयास किया गया है।
कोर्ट ने हालांकि अपने फैसले में बच्चों को धर्मनिर्पेक्ष शिक्षा दिए जाने पर ज़ोर दिया और कहा कि बालगृह अनाथों और बच्चों को धार्मिक शिक्षा नहीं देगा।
कोर्ट ने बालगृह संचालकों से किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम की धारा 53 के तहत बच्चों को शिक्षा प्रदान करने को कहा है।
कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि यह राज्य सरकार की ज़िम्मेदारी है कि बालगृह के बच्चो को धार्मिक शिक्षा नहीं बल्कि आधुनिक शिक्षा प्रदान की जाए।
कोर्ट ने इस मामले की लिखित शिकायत पीड़ित या उसके परिजनों द्वारा नहीं किए जाने पर पुलिस की कार्रवाई को अधिकार क्षेत्र से बाहर बताते हुए अपीलकर्ताओं को अग्रिम ज़मानत दिए जाने का आदेश दिया।
केस टाइटल : जेराल्ड अलमेडा व अन्य बनाम स्टेट ऑफ़ मध्य प्रदेश (Misc Criminal Case No. 24589 of 2023)
आदेश यहाँ पढ़ें –