क़ानूनी पेशा पितृसत्तात्मक और जाति आधारित, इसे समाज के वंचित समूहों और विभिन्न समुदायों के लिए खोलने की ज़रूरत: चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़

क़ानूनी पेशा पितृसत्तात्मक और जाति आधारित, इसे समाज के वंचित समूहों और विभिन्न समुदायों के लिए खोलने की ज़रूरत: चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़

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  • November 21, 2022
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चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने शनिवार को बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI) द्वारा आयोजित सम्मान समारोह में बोलते हुए बार के वरिष्ठ सदस्यों से अपने जूनियर्स को ठीक तरह से भुगतान करने का आह्वान किया है। विशेष रूप से बड़े शहरों में ताकि वो एक गरिमापूर्ण जीवन गुज़ार सकें।

चीफ जस्टिस ने कहा कि सिर्फ इस वजह से कि इस पेशे के शुरुआती दिनों में उन्होंने यह सब बड़ी कठिनाइयों से सीखा है सीनियर अधिवक्ताओं को अपने जूनियर्स के साथ गुलामों जैसा बर्ताव नहीं करना चाहिए।

इस संबंध में चीफ जस्टिस ने बड़े शहरों में जूनियर्स को कम वेतन के कारण पेश आने वाली कठिनाइयों को भी रेखांकित किया।

चीफ जस्टिस ने कहा कि कितने सीनियर्स अपने जूनियर्स को सभ्य वेतन का भुगतान करते हैं ? उन्होंने ने कहा कि अगर आप दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरु या कोलकाता में रह रहे हैं तो एक युवा वकील को जीवित रहने के लिए कितना खर्च आता है?

इलाहबाद जैसी जगह में जहाँ दूसरे ज़िलों से आकर रहने के लिए घर तलाश करना, फिर किराये का भुगतान, ट्रांसपोर्टेशन और भोजन का इंतिज़ाम करना होता है। युवा वकीलों के पास चेम्बर भी नहीं होता है। चीफ जस्टिस ने कहा कि यह सब बदलना चाहिए। सीनियर्स के रूप में यह ज़िम्मेदारी हम सब की है।

चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने कहा कि क्या इस पेशे में यह आम बात नहीं है कि जूनियर्स एक अनौपचारिक नेटवर्क के माध्यम से ही सीनियर्स को तलाश करते हैं? उन्होंने कहा कि हमारे पास योग्यता के आधार पर युवा वकीलों को चेम्बर में चुनने का कोई तरीका नहीं है।

चीफ जस्टिस ने क़ानूनी पेशे को उसके वर्तमान पितृसत्तात्मक और जातिगत आधारित संरचना से निकाल कर समाज के हर वर्ग के लिए खोलने के महत्त्व पर ज़ोर दिया।

चीफ जस्टिस ने कहा कि “क़ानूनी पेशे की यह संरचना जो पितृसत्तात्मक और कभी कभी जाति आधारित होती है इसको बदलना होगा ताकि वकील के रूप में हम अपने समाज के लिए अपने कर्तव्यों का निर्वहन करें ताकि कानूनी पेशे को हमारे समाज में वंचित समूहों और और विभिन्न समुदायों के लोगों के लिए खोला जा सके।”

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