बहु का साझा परिवार में रहने का अधिकार ससुराल वालों को परिवार से अलग नहीं कर सकता :दिल्ली हाईकोर्ट

बहु का साझा परिवार में रहने का अधिकार ससुराल वालों को परिवार से अलग नहीं कर सकता :दिल्ली हाईकोर्ट

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  • May 25, 2023
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दिल्ली हाईकोर्ट ने हाल ही में एक वैवाहिक विवाद से जुड़े मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि एक साझा परिवार में बहु का अधिकार इस बात की अनुमति नहीं देता कि अन्य ससुराल वालो को उस साझा परिवार से बाहर कर दिया जाए।

जस्टिस प्रतिभा एम सिंह की पीठ एक महिला की वैवाहिक विवाद से संबंधित याचिका पर सुनवाई कर रही थी।

महिला ने डिविज़नल कमिश्नर के आदेश कि खिलाफ याचिका दायर की थी जिसमे उसकी साझा परिवार से बेदखली के फैसले को पलट दिया गया था लेकिन उसे अपने सास ससुर के साथ घर को साझा करने का निर्देश दिया गया था।

क्या है मामला ?
इस मामले में अपीलकर्ता (बहु) के खिलाफ प्रतिवादियों (सास ससुर) ने डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट साउथ ईस्ट दिल्ली में माता पिता और वरिष्ठ नागरिक भरण पोषण एवं कल्याण अधिनियम के तहत घर से बेदखल करने के लिए याचिका दायर की थी।

22 सितम्बर 2022 को डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट ने याचिकाकर्ता (बहु) को प्रतिवादियों (सास ससुर) के घर से बेदखल करने का निर्देश जारी किया था। जिसके खिलाफ याचिकाकर्ता ने डिविज़नल कमिश्नर के समक्ष अपील की थी।

23 मार्च 2023 को डिविज़नल कमिश्नर ने याचिकाकर्ता को बेदखल किये जाने के आदेश को रद्द कर दिया था लेकिन प्रतिवादियों को याचिकाकर्ता के साथ घर में रहने की अनुमति दे दी थी।

कोर्ट के समक्ष याचिकाकर्ता की ओर से उसके वकील ने अपनी प्रस्तुति में कहा कि हालांकि याचिकाकर्ता डिविज़नल कमिश्नर द्वारा घर से बेदखल करने के आदेश को रद्द किये जाने से संतुष्ट है लेकिन उसका 9 साल का एक नाबालिग बेटा है जिसके साथ वह रहती है। क्यूंकि अपने ससुराल वालों से उसके संबंध अच्छे नहीं हैं इस लिए वह नहीं चाहती कि उसके ससुराल वाले उसके साथ उसी घर में रहें।

प्रतिवादियों की ओर से कोर्ट के समक्ष प्रस्तुति में कहा गया कि याचिकाकर्ता को 5 वैकल्पिक संपत्तियों का सुझाव दिया गया लेकिन उनमे से किसी एक को भी याचिकर्ता ने स्वीकार नहीं किया।

कोर्ट ने जब संपत्ति के बारे में पुछा तो याचिकाकर्ता द्वारा विवादित नहीं था कि संपत्ति पर मालिकाना हक़ प्रतिवादियों (सास ससुर) का है।

कोर्ट ने सतीश चंद्र आहूजा बनाम स्नेहा आहूजा के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि ” साझा परिवार की अवधारणा स्पष्ट रूप से यह कहती है कि एक साझा परिवार में बहु का अधिकार अनपेक्षित अधिकार नहीं है और ससुराल वालों को बाहर नहीं किया जा सकता। याचिकाकर्ता का यह कहना कि ससुराल वालों को अपनी संपत्ति में रहने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए, इस विषय पर स्थापित समझ के पूरी तरह से विपरीत है। बहु एक साझा या वैवाहिक परिवार में रहने के अधिकार का दावा तो कर सकती है लेकिन वह यह नहीं कह सकती है कि साझा परिवार में उसके ससुराल वालो को उसके साथ नहीं रहना चाहिए।”

केस : रितु चेरनालिया बनाम अमर चेरनालिया व अन्य (W.P.(C) 6986/2023 & CM APPLs. 27185-86/2023)
आदेश यहाँ पढ़ें:

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