पर्याप्त कारण की अनुपस्थिति में लंबे समय तक पति पत्नी का एक दूसरे को सहवास से रोकना मानसिक क्रूरता:  इलाहबाद हाईकोर्ट

पर्याप्त कारण की अनुपस्थिति में लंबे समय तक पति पत्नी का एक दूसरे को सहवास से रोकना मानसिक क्रूरता: इलाहबाद हाईकोर्ट

  • Hindi
  • May 25, 2023
  • No Comment
  • 1337

इलाहबाद हाई कोर्ट ने हाल ही में अपने एक महत्वपूर्ण आदेश में माना है कि एक लंबे समय तक यदि एक पति और पत्नी अपने साथी को शारीरिक संबंध बनाने की अनुमति नहीं देता है तो यह मानसिक प्रताड़ना और क्रूरता के समान होगा। और इस आधार पर विवाह को भंग किया जा सकता है।

कोर्ट ने आदेश में कहा कि एक पति या पत्नी को बिना उचित कारण के अपने जीवनसाथी को लंबे समय तक यौन संबंध की अनुमति न देना मानसिक क्रूरता के समान है।

जस्टिस सुनीत कुमार और जस्टिस राजेंद्र कुमार चतुर्थ की खंडपीठ ने फैमली कोर्ट के एक आदेश को चुनौती देने वाली याचिका की सुनवाई करते हुए यह आदेश पारित किया है।

फैमली कोर्ट ने एक पति की हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा 13 के तहत विवाह भंग की याचिका को ख़ारिज कर दिया था।

हाई कोर्ट ने वाराणसी की फैमली कोर्ट के प्रिंसिपल जज के आदेश को रद्द करते हुए अपीलकर्ता पति को विवाह भंग करने की अनुमति दे दी।

क्या है मामला ?
इस मामले में अपीलकर्ता (पति) का विवाह प्रतिवादी (पत्नी) से 5 मई 1979 को हिन्दू रीति रिवाज से हुआ था। विवाह के बाद कुछ दिनों तक प्रतिवादी (पत्नी) का आचरण ठीक ठाक था और वह अपनी ससुराल में रह रही थी लेकिन कुछ दिनों के बाद उसका व्यवहार और आचरण बदल गया और उसने अपीलकर्ता (पति) के साथ एक पत्नी के रूप में रहने से इंकार दिया। अपीलकर्ता (पति) के काफी मनाने के बाद भी प्रतिवादी (पत्नी) ने उसके साथ संबंध स्थापित नहीं किया।

अपीलकर्ता (पति) का कहना था कि कुछ समय के लिए दोनों एक ही छत के नीचे रहे लेकिन कुछ दिनों बाद प्रतिवादी (पत्नी) ने अपनी इच्छा से अपने माता पिता के घर रहना शुरू कर दिया।

अपीलकर्ता पुलिस विभाग में नौकरी करता था इस लिए वह कुछ दिनों बाद अपनी पोस्टिंग पर चला गया।

6 महीने बाद जब वह छूती लेकर घर आया तो उस ने प्रतिवादी (पत्नी) को फिर मनाने का प्रयास किया लेकिन उसने अपीलकर्ता (पति) साथ रहने से इंकार दिया और सहमति से तलाक़ देने की मांग की।

प्रतिवादी (पत्नी) के प्रस्ताव (सहमति से तलाक़) पर 4 जुलाई 1994 को एक पंचायत बुलाई गई। पंचायत में सामुदायिक रीति रिवाज के अनुसार दोनों पक्ष इस नतीजे पर पहुंचे कि अपीलकर्ता (पति) और प्रतिवादी (पत्नी) के बीच तलाक़ करा दिया जाए।

पंचायत में हुए फैसले के अनुसार अपीलकर्ता (पति) ने स्थाई गुज़ारा भत्ता के रूप में प्रतिवादी को 22 हज़ार रुपए दे दिए थे।

इस के बाद प्रतिवादी (पत्नी) ने दूसरा विवाह कर लिया। दूसरे विवाह से प्रतिवादी के दो बेटे हैं।

अपीलकर्ता ने 4 जुलाई की पंचायत के फैसले और लंबे परित्याग तथा मानसिक क्रूरता के आधार पर हिन्दू विवाह अधिनियम 1955 की धारा 13 के तहत फैमली कोर्ट से तलाक़ की डिक्री मांगी थी।

प्रतिवादी (पत्नी) फैमली कोर्ट में उपस्थिति नहीं हुई इस लिए कोर्ट ने इस मामले में एक पक्षीय सुनवाई शुरू कर दी।

लेकिन फैमली कोर्ट ने अपीलकर्ता द्वारा पेश किये गए साक्ष्यों को प्रयाप्त न पाते हुए मामले को लागत के साथ ख़ारिज कर दिया।

फैमली कोर्ट के फैसले के खिलाफ पति ने हाई कोर्ट में याचिका दायर कर दी।

हाई कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई करते हुए पाया कि फैमली कोर्ट ने अपीलकर्ता के मामले को इस आधार पर ख़ारिज कर दिया कि साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत दस्तावेज़ फोटोकॉपी थे। अपीलकर्ता ने मूल दस्तावेज़ प्रस्तुत नहीं किये थे। कागज़ात की फोटोकॉपी कोर्ट में साक्ष्य के रूप में स्वीकार्य नहीं है। अपीलकर्ता यह साबित करने में विफल रहा कि प्रतिवादी (पत्नी) ने दूसरा विवाह कर लिया है।

कोर्ट ने समर घोष बनाम जया घोष 2007 और विनीता सक्सेना बनाम पंकज पंडित 2006 के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि “निःसंदेह बिना प्रयाप्त कारण के अपने साथी के द्वारा लंबे समय तक संभोग की अनुमति न देना ऐसे जीवन साथी के लिए मानसिक क्रूरता की श्रेणी में आता है। “

कोर्ट ने कहा कि “अभिलेख से स्पष्ट है कि इस मामले में प्रतिवादी (पत्नी) अपीलकर्ता (पति) के साथ पारिवारिक और दाम्पत्य ज़िम्मेदारियों को निभाने के लिए तैयार नहीं है और लंबे समय से दोनों अलग अलग रह रहे हैं। अपीलकर्ता(पति) के अनुसार प्रतिवादी (पत्नी) विवाह के बंधन को बनाए रखने के लिए तैयार नहीं है और उनका विवाह पूरी तरह टूट चुका है। “

कोर्ट ने इसी आधार पर अपीलकर्ता की अपील को अनुमति देते हुए फैमली कोर्ट के आदेश को रद्द कर दिया और अपीलकर्ता को तलाक़ की डिक्री देने का आदेश पारित किया।

केस: रविंद्र प्रताप यादव बनाम श्रीमती आशा देवी व अन्य (405 / 2013)

पूरा आदेश यहाँ पढ़ें :

Related post

Allahabad High Court News: “Court Is Against Illegal Relations Not Live-in Relationships 

Allahabad High Court News: “Court Is…

Allahabad High Court News: “Court Is…
UP Legal News: There Is No Live-in Relationship In Islam, Provision of Punishment Under Quran: Allahabad High Court 

UP Legal News: There Is No…

There Is No Live-in Relationship In…
“इस्लाम लिव इन रिलेशन को व्यभिचार के रूप में करता है परिभाषित” इलाहबाद हाई कोर्ट ने अंतर धार्मिक जोड़े को संरक्षण देने से किया इंकार

“इस्लाम लिव इन रिलेशन को व्यभिचार…

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने हाल ही…

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *