आरोपी के खिलाफ साक्ष्य न होने की स्थिति में समझौते के आधार पर ख़त्म हो सकता है पॉक्सो और बलात्कार का मुकदमा : इलाहबाद हाई कोर्ट
- Hindi
- June 15, 2023
- No Comment
- 1036
इलाहबाद हाई कोर्ट ने पिछले हफ्ते एक महत्वपूर्ण आदेश में पॉक्सो और बलात्कार के आरोपी के खिलाफ मामले को तब ख़ारिज कर दिया जब पुलिस ने जांच के दौरान जुटाए गए साक्ष्यों पर ग़ौर किये बिना आरोपी के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल कर दिया।
इस मामले में आरोपी ने कोर्ट में आवेदन दायर कर पॉक्सो अधिनियम और बलात्कार के अपराध में अपने खिलाफ मामले को ख़ारिज किये जाने की मांग की थी।
जस्टिस अरुण कुमार सिंह देशवाल की पीठ ने इस मामले की सुनवाई करते हुए आवेदक के खिलाफ उपरोक्त अपराध के तहत आरोप पत्र और मुक़दमे की पूरी कार्यवाही को ख़ारिज किये जाने का आदेश दिया।
आवेदक की ओर से उसके वकील का कोर्ट के समक्ष तर्क था कि इस मामले में पीड़िता ने सीआरपीसी की धारा 164 के तहत अपने बयान में कहा है कि उसने अपनी इच्छा से आवेदक के साथ विवाह किया है और वह आवेदक के साथ उसकी पत्नी के रूप में रह रही है। उसके बाद दोनों पक्षकारों के मध्य इस मामले में समझौता भी हुआ क्योँकि पीड़िता और आवेदक पति पत्नी के रूप में एक साथ रह रहे हैं। मेडिकल जांच के अनुसार पीड़िता की उम्र 18 वर्ष से अधिक है।
इस मामले में हाई कोर्ट ने बरेली की पॉक्सो अदालत को दोनों पक्षकारों के बीच हुए समझौते की पृष्टि किये जाने का निर्देश दिया था जिसके बाद अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश/ विशेष न्यायाधीश (पॉक्सो अधिनियम) ने पक्षकारों के बीच समझौते की पृष्टि की थी।
कोर्ट ने पाया कि इस मामले में मेडिकल जांच के अनुसार आवेदक द्वारा पीड़िता के खिलाफ यौन अपराध किये जाने की पृष्टि नहीं हुई।
पीड़िता के बयान और मेडिकल जांच से यह भी सिद्ध होता है कि पीड़िता की उम्र 18 वर्ष से अधिक है और पीड़िता ने सीआरपीसी की धारा 164 के तहत दर्ज बयान में स्पष्ट रूप से कहा है कि उसने अपनी इच्छा से आवेदक के साथ विवाह किया है।
कोर्ट के समक्ष प्रश्न था कि क्या पॉक्सो अधिनियम और बलात्कार के अपराध में पक्षों के बीच समझौते के आधार पर मुक़दमे को ख़त्म किया जा सकता है ?
कोर्ट ने कहा कि प्रवीण कुमार सिंह @ प्रवीण कुमार व 2 अन्य बनाम स्टेट ऑफ़ यु पी व अन्य और ओम प्रकाश बनाम स्टेट ऑफ़ यु पी व अन्य के मामले में हाई कोर्ट का फैसला था कि आरोपी और पीड़िता के बीच समझौते के आधार पर पॉक्सो अधिनियम के तहत मामलों की कार्यवाही को ख़त्म नहीं किया जा सकता है क्योँकि पॉक्सो अधिनियम के तहत अपराध समाज के विरूद्ध किया गया अपराध है।
कोर्ट ने स्टेट ऑफ़ मध्य प्रदेश बनाम लक्ष्मी नारायण, स्टेट ऑफ़ मध्य प्रदेश बनाम ध्रुव गुर्जर और पर्वत भाई अहीर बनाम स्टेट ऑफ़ गुजरात के मामलों में सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का हवाला दिया जिसमे कहा गया था कि ऐसे अपराधों में समझौते या कमज़ोर साक्ष्य के आधार पर मुक़दमे को ख़त्म नहीं किया जा सकता।
कोर्ट ने कहा कि हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने राम अवतार बनाम स्टेट ऑफ़ मध्य प्रदेश के मामले में कहा था कि एससीएसटी अधिनियम सहित विशेष क़ानून के तहत अपराध समाज के विरूद्ध अपराध हैं लेकिन ऐसे मामलों में कोर्ट सीआरपीसी की धारा 482 के तहत निहित शक्तियों का प्रयोग कर सकता है।
कोर्ट ने अंकित जाटव बनाम स्टेट ऑफ़ राजस्थान के मामले में राजस्थान हाई कोर्ट की एकल पीठ के फैसले का हवाला दिया जिसमे कोर्ट ने पीड़िता के मजिस्ट्रेट के समक्ष दिए गए धारा 164 के तहत बयान के आधार पर कि “आरोपी द्वारा कोई अपराध नहीं किया गया और उसने अपनी इच्छा से आरोपी के साथ विवाह करने के लिए अपना घर छोड़ दिया था, मुक़दमे की कार्यवाही को ख़त्म किये जाने का फैसला दिया था।
कोर्ट ने पाया कि इस मामले में मेडिकल जांच से सिद्ध होता है कि पीड़िता की उम्र 18 वर्ष से अधिक है इस लिए आवेदक के खिलाफ पॉक्सो अधिनियम के तहत मामला नहीं बनता। पीड़िता के धारा 164 के तहत दर्ज बयान के अनुसार आवेदक ने पीड़िता के खिलाफ कोई यौन अपराध नहीं किया है, विवाह के बाद से वह दोनों पति पत्नी के रूप में रह रहे हैं और उसकी माँ ने आवेदक से 5 लाख रूपये ऐंठने के लिए उसके खिलाफ झूठा मामला दर्ज कराया है।
कोर्ट ने उपरोक्त तथ्यों के आधार पर आवेदक के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही को ख़त्म किये जाने का आदेश दिया।
Case- Fakre Alam @ Shozil V State Of U.P. And 3 Others (APPLICATION U/S 482 No. 41580 of 2022)
आदेश यहाँ पढ़ें –