इलाहबाद हाईकोर्ट ने 21 साल से जेल में बंद दुष्कर्म के आरोपी को किया बरी, निचली अदालत के आदेश और 14 साल तक मामले को टालने के लिए हाईकोर्ट की रजिस्ट्री पर उठाए सवाल

इलाहबाद हाईकोर्ट ने 21 साल से जेल में बंद दुष्कर्म के आरोपी को किया बरी, निचली अदालत के आदेश और 14 साल तक मामले को टालने के लिए हाईकोर्ट की रजिस्ट्री पर उठाए सवाल

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  • November 23, 2022
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इलाहबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में दुष्कर्म के मामले में 21 साल से जेल में बंद उम्र कैद की सजा पाए एक दोषी को बरी करने का आदेश दिया है।

जस्टिस कौशल जयेन्द्र ठाकर और जस्टिस अजय त्यागी की खंडपीठ ने यह आदेश अल्ताफ उर्फ़ नफीस की आपराधिक अपील की सुनवाई करते हुए दिया है।

कोर्ट ने आदेश में माना कि मामले में दोषी अल्ताफ की अपील 2004 में कोर्ट में दाखिल की गई थी, और निचली अदालत का रिकॉर्ड हाईकोर्ट में आ गया था लेकिन हाईकोर्ट की रजिस्ट्री ने पेपर बुक नहीं बनाया था। कोर्ट ने कहा कि दोषी की अपील 2008 में पुनः लगाई गई थी फिर अब 2022 में लगी है।

कोर्ट ने दोषी को बरी करते हुए नाराज़गी जताई और कहा कि इस मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा सौदान सिंह बनाम स्टेट ऑफ़ यु पी में दिए गए आदेश की तामील नहीं की गई।

कोर्ट ने कहा कि दोषी द्वारा जेल में 21 साल गुज़ारने के बाद भी सी आर पी सी के प्रावधानों के तहत क्षमा करने पर विचार नहीं किया गया जबकि अधिकारीयों को स्वंय कार्यवाई करनी चाहिए थी।

क्या है मामला?
इस मामले में कानपुर देहात के स्पेशल जज द्वारा 23 अक्तूबर 2003 को पास किये गए आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई थी।

निचली अदालत के आदेश में अल्ताफ उर्फ़ नफीस नामक आरोपी को आई पी सी की धारा 376 और एस सी एस टी (प्रिवेंशन ऑफ़ एट्रोसिटीज) एक्ट, 1989 की धारा 3 (2) (V) के तहत दोषी पाए जाने पर उम्र कैद की सजा सुनाई गई थी।

इस मामले में अभियोक्त्री के पति कमलेश कुमार ने कानपुर देहात के अकबरपुर पुलिस थाने में शिकायत दर्ज कराई थी।

कमलेश का आरोप था कि 9 फरवरी 2001 को दोपहर 12 बजे के लगभग जब अभियोक्त्री अपने खेत जानवरों का चारा लेने गई थी तब ही आरोपी अल्ताफ उर्फ़ नफीस उर्फ़ पप्पू ने उसे पकड़ लिया था और फिर उसके साथ दुष्कर्म किया था।

अभियोक्त्री की आवाज़ सुन कर जब कमलेश और उसका भाई दिनेश जो बगल के खेत पर चारा काट रहे थे घटना की जगह पर पहुंचे तो उन्होंने आरोपी को उसके साथ दुष्कर्म करते हुए देखा।

आरोप था कि अभियोक्त्री को चोट आई थी और उसकी चूड़ियां टूट गई थीं। कमलेश, उसका भाई दिनेश और दरोगी लाल पीड़िता को पुलिस थाने ले कर आए थे।

लिखित सुचना के आधार पर आरोपी के खिलाफ मुकदमा संख्या 36/ 2001 में आई पी सी की धारा 376 और एस सी एस टी (प्रिवेंशन ऑफ़ एट्रोसिटीज) एक्ट, 1989 की धारा 3 (2) (V) के तहत मामला दर्ज किया गया था।

इस मामले में स्पेशल जज एस सी / एस टी द्वारा आरोपी को दोषी पाया गया था और 23 अक्तूबर 2003 को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी। इसी आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई थी।

आवेदक का तर्क –
हाईकोर्ट के समक्ष अपनी प्रस्तुति में आवेदक के अधिवक्ता का तर्क था कि एफ आई आर में कहीं भी यह नहीं कहा गया कि पीड़िता का संबंध जाति विशेष से है।

जांच अधिकारी और सेशन कोर्ट के समक्ष पेश किये गए दस्तावेज़ी साक्ष्यों से यह साबित नहीं होता कि पीड़िता का संबंध एस सी/ एस टी समुदाय से है।

अभियोक्त्री और अभियोजन पक्ष के गवाह (अभियोक्त्री के पति ) के बयान के अनुसार वो आवेदक/ आरोपी को नहीं जानते थे। ऐसे में एस सी एस टी (प्रिवेंशन ऑफ़ एट्रोसिटीज) एक्ट, 1989 की धारा 3 (2) (V) के तहत मामला नहीं बनता है।

आवेदक के अधिवक्ता ने अपनी प्रस्तुति में कोर्ट से कहा कि दुष्कर्म के मामले में आवेदक को झूठा फसाया गया है।

मेडिकल रिपोर्ट अभियोजन के साक्ष्य का समर्थन नहीं करती क्यूंकि अभियोक्त्री पर आंतरिक या बहरी चोट नहीं पाई गई थी जबकि एफ आई आर और मेडिकल जांच तुरंत कराई गई थी।

आवेदक की ओर से तर्क दिया गया कि अभियोक्त्री के पति ने अभियोजन पक्ष के गवाह के रूप में जिरह में दुष्कर्म के कृत्य का इंकार किया था।

निचली अदालत का आदेश अनुमान पर आधारित था इस लिए उसे बदलने की ज़रूरत है।

इस संबंध में हाईकोर्ट द्वारा आपराधिक अपील संख्या 204/ 2021 विष्नु बनाम स्टेट ऑफ़ यु पी में 28 जनवरी 2021 और आपराधिक संख्या 4083 / 2017 पिंटू गुप्ता बनाम स्टेट ऑफ़ यु पी में 28 जुलाई 2022 को पारित आदेशों का हवाला देकर कहा गया कि यह मामला आई पी सी की धारा 376 और एस सी एस टी (प्रिवेंशन ऑफ़ एट्रोसिटीज) एक्ट, 1989 की धारा 3 (2) (V) को आकर्षित नहीं करता है इस लिए आवेदक की सजा को रद्द कर देना चाहिए।

अभियोजन का तर्क –
अभियोजन पक्ष का तर्क था कि आरोपी की सजा न्यायोचित और उचित है और आरोपी का अपराध आई पी सी की धारा 376 और एस सी एस टी (प्रिवेंशन ऑफ़ एट्रोसिटीज) एक्ट, 1989 की धारा 3 (2) (V) को पूर्ण रूप से आकर्षित करता है।

अभियोजन पक्ष ने तर्क में वेद प्रकाश बनाम स्टेट ऑफ़ हरयाणा, जे आई सी 1996 एस सी 18 का हवाला दिया था।

अभियोजन पक्ष ने कोर्ट के समक्ष अपनी प्रस्तुति में कहा कि अभियोक्त्री के बयान के अनुसार आरोपी ने अपराध करने से पूर्व उसका,व उसके पति का नाम व जाति पूछी थी। इस लिए निचली अदालत का आदेश न्यायोचित और उचित है।

कोर्ट ने माना कि निचली अदालत का आदेश दर्शाता है कि आरोपी /आवेदक को संबंधित धाराओं में बिना किसी साक्ष्य के दोषी ठहराया गया है। कोर्ट ने माना कि वेद प्रकाश बनाम स्टेट ऑफ़ हरयाणा, जे आई सी 1996 एस सी 18 का मामला इस केस में लागु नहीं होता।

कोर्ट ने आवेदक पक्ष के तर्कों को स्वीकार करते हुए दोषी को बरी करने का आदेश दिया है।

केस टाइटल – अफताफ उर्फ़ नफीस उर्फ़ पप्पू बनाम स्टेट ऑफ़ यु पी (क्रिमिनल अपील संख्या 5275/ 2008)

पूरा आदेश यहाँ पढ़ें –

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