मानसिक और शारीरिक रूप से उत्पीड़न कह देने मात्र से 498-A में नहीं बनता केस: बॉम्बे हाई कोर्ट

मानसिक और शारीरिक रूप से उत्पीड़न कह देने मात्र से 498-A में नहीं बनता केस: बॉम्बे हाई कोर्ट

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  • October 28, 2022
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बॉम्बे हाई कोर्ट की औरंगाबाद पीठ ने हाल ही में घरेलु हिंसा से जुड़े एक मामले के तहत दर्ज प्राथमिकी को रद्द करने का आदेश दिया है।

जस्टिस विभा कंकनवाड़ी और जस्टिस राजेश एस पाटिल की पीठ ने सी आर पी सी की धारा 482 के तहत मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि केवल “मानसिक और शारीरिक रूप से उत्पीड़न शब्द का उपयोग आई पी सी की धारा 498- ए को आकर्षित करने के लिए पर्याप्त नहीं है।

क्या है मामला ?
इस मामले में पत्नी (प्रतिवादी) ने पति (आवेदक) और उसके परिवार के खिलाफ भाग्यनगर पुलिस स्टेशन जिला नांदेड़ (महाराष्ट्र) में 9 सितम्बर 2020 को आई पी सी की धारा 498-A, 323, 504, और 506 के तहत मामला दर्ज कराया था।

दोनों का विवाह 12 दिसंबर 2019 को हुआ था। पत्नी (प्रतिवादी) के अनुसार विवाह का सारा खर्चा उसके पिता द्वारा सहन किया गया था और विवाह के समय 21 तोला सोना, एक सोने की डेढ़ तोले की चैन और 5 ग्राम की अंगूठी और 5 लाख कैश दिया गया था।

पत्नी का कहना था कि विवाह के एक महीने बाद उसके साथ नौकरानी जैसा व्यवहार किया गया गया था। आवेदकों द्वारा चार पहिया वाहन खरीदने के लिए 4 लाख रुपये की मांग की गयी थी। जब उसने बताया कि इतनी रकम उसके पिता के पास नहीं है तो आवेदक (पति) ने उसे शारीरिक और मानसिक रूप से प्रताड़ित किया था। बाद में आवेदक के परिवार द्वारा उसके साथ शारीरिक हिंसा की गयी थी।

आवेदक का पक्ष –
आवेदक की ओर से दी गयी प्रस्तुति में दर्ज प्राथमिकी को मनगढंत विवरण बताया गया था। यह भी कहा गया था कि यह प्रतिवादी (पत्नी) का दूसरा विवाह है। प्रतिवादी के पूर्व वैवाहिक इतिहास के दस्तावेज़ को प्रस्तुति में दाखिल किया गया था। जिस से पता चलता है कि प्रतिवादी को इस तरह के आरोप लगाने की आदत है।

प्रतिवादी पक्ष –
प्रतिवादी पक्ष ने आवेदक द्वारा दर्ज प्राथमिकी को रद्द करने की मांग पर आपत्ति की थी। प्रतिवादी पक्ष का तर्क था कि जब मामले में जांच हो चुकी है और साक्ष्य आ चुके हैं तो यह मामला प्राथमिकी और पूरी कार्रवाही को रद्द करने के लिए उचित नहीं है।

कोर्ट ने कहा यदि किसी विवाहित महिला को पारिवारिक उद्देश्य से घर का काम करने लिए कहा जाता है तो यह नहीं कहा जा सकता कि यह नौकरानी की तरह है। यदि उसकी काम करने की इच्छा नहीं थी तो उसे विवाह पूर्व बता देना चाहिए था ताकि इस समस्या का समाधान पहले ही हो जाता।

पीठ ने कहा कि प्रतिवादी का आरोप था कि विवाह के एक महीने के बाद आवेदक (पति) ने चार पहिया वहां के लिए 4 लाख रुपये की मांग की थी और जब प्रतिवादी ने अपने पिता द्वारा इसे ना देने पाने में असमर्थता जताई तो आवेदक ने शारीरिक और मानसिक रूप से प्रताड़ित किया था। इसमें विवरण का आभाव है। जब तक कृत्यों का विवरण नहीं दिया जाता यह निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता है कि वो कृत्य उत्पीड़न के बराबर है या किसी व्यक्ति की क्रूरता के अधीन है।

कोर्ट ने माना कि प्रतिवादी के सभी आरोपों में विवरण का आभाव है। कोर्ट ने कहा कि बहुभावी आरोप आई पी सी की धारा 498-A की सामग्रियों को आकर्षित नहीं करते हैं।

कोर्ट ने कहा कि इस मामले में लगाए गए आरोप और साक्ष्य प्रथम दृष्टया स्तर पर ही आई पी सी की धारा 498-A के तहत दंडनीय अपराध की सामग्री को आकर्षित करने के लिए अपर्याप्त हैं, फिर जहाँ तक आई पी सी की धारा 323, 504, 506, के साथ पठित धारा 34 का संबंध है यह वास्तव में पहले से ही आई पी सी की धारा 498-A के तहत प्रदान किया गया है। और जब तक क्रूरता के अपराधों को नहीं दिखाया जाता है आई पी सी की धारा 498-A के तहत अपराध का मामला नहीं बनता है। इस लिए आवेदकों को मुक़दमे का सामना करने के लिए कहना एक व्यर्थ कवायद होगी।

कोर्ट ने आवेदक की मांग को स्वीकार करते हुए उसके खिलाफ दर्ज प्राथमिकी को रद्द करने का आदेश दिया है।

केस टाइटल – सारंग दिवाकर आमले और अन्य बनाम स्टेट ऑफ़ महाराष्ट्र (CRIMINAL APPLICATION NO.40 OF 2021)
पूरा आदेश यहाँ पढ़ें –

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