ज़मानत पर रिहा आरोपी का महिमामंडन समाज और न्याय व्यवस्था के हित में नहीं, मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने रद्द की ज़मानत
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- November 4, 2022
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मध्यप्रदेश हाई कोर्ट ने हाल ही में धोखाधड़ी के मामले में एक आरोपी की ज़मानत रद्द करने का आदेश दिया है।
जस्टिस गुरपाल सिंह अहलूवालिया की पीठ ने एक आरोपी की ज़मानत रद्द करने का आदेश देते हुए कहा कि किसी आरोपी का ज़मानत के बाद भीड़ द्वारा महिमामंडन करने से समाज पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
क्या है मामला ?
इस मामले में आरोपी के खिलाफ मध्यप्रदेश के अशोकनगर में आई पी सी की धाराओं 420, 467, 468, 409, और 471 के तहत दर्ज मामले में निचली अदालत में ट्रायल चल रहा है।
हाई कोर्ट ने आरोपी को 16 अगस्त 2022 को इस शर्त के साथ ज़मानत दी थी कि वह सीईओ, जिला पंचायत, अशोकनगर के खाते में चेक के माध्यम से रु.5,00,000/- की राशि जमा करेगा और रु.1,00,000/- की नकद ज़मानत देगा। लेकिन ज़मानत के बाद अदालत ने पाया था कि आरोपी का सैकड़ो लोगों ने हार मालाओं से स्वागत किया था। उसके समर्थन में नारे लगाए थे। और खुली जीप में उसे घर ले जाया गया था।
दूसरे दिन आरोपी के समर्थकों द्वारा हवा में गोलियां भी चलायी गयी थीं।
हाई कोर्ट में आरोपी की ज़मानत रद्द करने के संबंध में सी आर पी सी की धारा 439 (2) के तहत आवेदन किया गया था। आवेदन के साथ ज़मानत के बाद की पूरी घटना का वीडियो एक CD की शक्ल में इंडियन एविडेंस एक्ट की धारा 65- B के तहत प्रमाण पत्र के साथ कोर्ट के सामने पेश किया गया था।
आवेदक का पक्ष
आवेदक का तर्क था कि आरोपी की ज़मानत हैरान कर देने वाली है और जिस तरह से वह जेल से बाहर आया है, उसने गवाहों के मनोबल पर भी प्रतिकूल प्रभाव डाला है और परिणाम स्वरूप गवाह मुकर रहे हैं। इस संबंध में सुश्री पी बनाम स्टेट ऑफ़ मध्यप्रदेश और अन्य (ए आई आर 2022 SC 2183) का हवाला दिया गया था जिसमे सुप्रीम कोर्ट ने इसी तरह के मामले में आरोपी की ज़मानत रद्द कर दी थी।
आरोपी- प्रतिवादी का पक्ष
आरोपी की ओर से ज़मानत रद्द करने के आवेदन का विरोध किया गया था। तर्क दिया गया था कि गलत उद्देश्य से ज़मानत रद्द करने का आवेदन किया गया है। यह भी कहा गया था कि आरोपी ने आवेदक के पति के खिलाफ कई शिकायतें दर्ज कराई थीं इस लिए उसकी आरोपी के साथ दुश्मनी है।
आरोपी पक्ष का तर्क था कि रिहाई के बाद आरोपी का उसके समर्थको द्वारा मात्र स्वागत करना और आशीर्वाद देना आतंक नहीं होता है, और यह भारतीय समाज की एक सामान्य विशेषता है, इस में कुछ भी असामान्य नहीं है।
प्रतिवादी पक्ष का कहना था कि आवेदक की ओर से साक्ष्य के रूप में पेश किया गया वीडियो जाली ओर टेम्पर्ड है जिसकी अलग से जांच की आवश्यकता है।
कोर्ट ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद माना कि इस मामले के तथ्यों पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा सुश्री पी बनाम स्टेट ऑफ़ मध्यप्रदेश और अन्य (ए आई आर 2022 SC 2183) में निर्धारित दिशानिर्देशों के आधार पर विचार किया जाएगा।
कोर्ट ने कहा कि यह स्पष्ट है कि आरोपी -प्रतिवादी अपने आप को एक योद्धा के रूप में पेश कर जेल से बाहर आया है। ज़मानत की तुलना बरी करने से नहीं की जा सकती है। यह आरोपी के लिए महज एक अस्थायी राहत है।
कोर्ट ने कहा कि “किसी आरोपी का महिमामंडन न सिर्फ समाज बल्कि न्याय व्यवस्था के हित में नहीं हो सकता, इस के अलावा गवाहों ने भी मुकरना शुरू कर दिया है जो कि आरोपी- प्रतिवादी के महिमामंडन या रिहाई का परिणाम हो सकता है। “
कोर्ट ने कहा कि इन हालात में कोर्ट की यह सुविचारित राय है कि आरोपी की ज़मानत रद्द करने योग्य है। इसलिए ज़मानत रद्द की जाती है।
क्या है सी आर पी सी की धारा 439 (2)?
439 – जमानत के बारे में उच्च न्यायालय या सेशन न्यायालय की विशेष शक्तियां –
(2) उच्च न्यायालय या सेशन न्यायालय,किसी ऐसे व्यक्ति को,जिसे इस अध्याय के अधीन जमानत पर छोड़ा जा चुका है, गिरफ्तार करने का निर्देश दे सकता है और उसे अभिरक्षा के लिए सुपुर्द कर सकता है।
केस टाइटल – श्रीमती रामलेश बाई बनाम स्टेट ऑफ़ मध्यप्रदेश और राजभान सिंह
पूरा आदेश यहाँ पढ़ें –