लिव इन रिलेशनशिप को विवाह के रूप में नहीं है मान्यता, ऐसे रिश्ते में रह रहे लोगों को नहीं है तलाक़ का अधिकार: केरला हाईकोर्ट
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- June 13, 2023
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केरला हाई कोर्ट ने हाल ही में कहा है कि पंजीकृत समझौते के आधार पर अगर दो लोग बिना विवाह किये एक साथ रहने (Live – in relationship) का फैसला करते हैं तो उन्हें विवाह और तलाक़ के दावे का अधिकार नहीं होगा।
जस्टिस ए मो. मुश्ताक़ और जस्टिस सोफी थॉमस की पीठ ने एक मामले की सुनवाई के बाद यह फैसला दिया है।
इस मामले में दो अपीलकर्ताओं ने एर्नाकुलम के एक पारिवारिक न्यायालय के आदेश को हाई कोर्ट में चुनौती दी थी।
अपीलकर्ताओं ने एक पंजीकृत समझौते के आधार पर 19 फरवरी 2006 से लिव इन रिलेशनशिप में रहना शुरू किया था। अपीलकर्ताओं का एक 16 साल का बच्चा है। दोनों अपीलकर्ता एक साथ पति पत्नी के रूप में लंबे समय से रह रहे थे।
एर्नाकुलम के पारिवारिक न्यायालय में अपीलकर्ताओं ने विशेष विवाह अधिनियम की धारा 28 के तहत आपसी सहमति से तलाक़ के लिए एक संयुक्त याचिका दायर की थी।
पारिवारिक न्यायालय ने अपीलकर्ताओं के विवाह को विशेष विवाह अधिनियम के अनुसार न पाते हुए उनकी याचिका को ख़ारिज कर दिया था जिसके बाद दोनों ने पारिवारिक न्यायालय के फैसले के खिलाफ हाई कोर्ट में अपील दायर की थी।
अपीलकर्ताओं के वकील ने कोर्ट से कहा था कि ” जब दोनों पक्षों ने घोषणा कर विवाह के रूप में अपने रिश्ते को स्वीकार कर लिया तो क़ानूनी रूप से वे विवाहित हैं या नहीं इस का निर्णय न्यायालय को नहीं करना चाहिए।”
अपीलकर्ताओं की ओर से वकील ने प्रस्तुति में कहा था कि “पंजीकरण अधिनियम के तहत पंजीकरण ही उनके दावे को मजबूत करने के लिए पर्याप्त होगा कि वे कानूनी रूप से विवाहित हैं।”
कोर्ट ने अपीलकर्ताओं के पक्ष को सुनने के बाद कहा कि ” विवाह एक सामाजिक संस्था के रूप में एक बड़े समाज में पालन किये जाने वाले सामाजिक ओर नैतिक आदर्शों को दर्शाता है। कानून ने अभी तक लिव-इन रिलेशनशिप को शादी के रूप में मान्यता नहीं दी है।”
कोर्ट ने कहा कि ” क़ानून केवल उन पक्षों को मान्यता देता है या तलाक देने की अनुमति देता है जो व्यक्तिगत कानून या धर्मनिरपेक्ष कानून के अनुसार विवाह के मान्यता प्राप्त रूप के अनुसार विवाहित हैं।”
कोर्ट ने कहा कि हम यह भी ध्यान देते हैं कि पारिवारिक न्यायालय के पास अलगाव के लिए इस तरह के दावे पर विचार करने का कोई अधिकार क्षेत्र नहीं था। यदि पारिवारिक न्यायालय के पास क्षेत्राधिकार नहीं है तो वह केवल यह कह सकता है कि याचिका पोषणीय नहीं थी और अलगाव के दावे को खारिज नहीं कर सकता है।
कोर्ट ने एर्नाकुलम के पारिवारिक न्यायालय को अपीलकर्ताओं की याचिका को अपोषणीय मानते हुए अपने आदेश को वापस लेने का निर्देश दिया औऱ इस मामले में पक्षकारों को कहीं औऱ उपाए निकालने की स्वतंत्रता दी है।
Case: XY V Nill (MAT.APPEAL NO. 784 OF 2022)
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