सरकार बदलने के बाद सामाजिक नीतियों में बदलाव लोकतान्त्रिक प्रक्रिया का हिस्सा, नई सरकार के फैसलों को मनमाना और भेदभावपूर्ण नहीं कहा जा सकता : बॉम्बे हाई कोर्ट

सरकार बदलने के बाद सामाजिक नीतियों में बदलाव लोकतान्त्रिक प्रक्रिया का हिस्सा, नई सरकार के फैसलों को मनमाना और भेदभावपूर्ण नहीं कहा जा सकता : बॉम्बे हाई कोर्ट

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  • June 22, 2023
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बॉम्बे हाई कोर्ट ने कहा है कि नई सरकार बनने के बाद सामाजिक निति में बदलाव, नीतियों और कार्यक्रमों को लागू करना लोकतान्त्रिक प्रक्रिया का हिस्सा है इसे मनमाना या दुर्भावनापूर्ण नहीं कहा जा सकता है।

जस्टिस जीएस पटेल और जस्टिस नीला गोखले की खंडपीठ एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसमे एकनाथ शिंदे सरकार द्वारा महाराष्ट्र राज्य अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति आयोग (SC&ST Commission) में नियुक्तियों को रद्द करने के आदेश को रद्द किए जाने की मांग की गई थी।

याचिकाकर्ताओं का आरोप था कि इस तरह के बदलाव केवल सत्तारूढ़ दल के समर्थकों और कार्यकर्ताओं को समायोजित करने के उद्देश्य से किए गए हैं। उनका कहना था कि यह न्याय सिद्धांतों के खिलाफ है।

याचिकाकर्ताओं का आरोप था कि एकनाथ शिंदे सरकार द्वारा जून 2022 में कार्यभार ग्रहण करने के बाद उनकी नियक्तियों को सुनवाई का अवसर दिए बिना या बिना किसी कारण बताए रद्द कर दिया गया जो कि प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत का उल्लंघन है।

याचिका में कहा गया था कि जून 2022 में शिंदे सरकार बनने के बाद सरकार ने आदिवासी उपयोजना परियोजनाओं में 29 परियोजना स्तरीय समितियों में नियुक्त 197 अध्यक्षों और ग़ैर सरकारी सदस्यों की नियुक्तियों को रद्द कर दिया था

याचिकाकर्ताओं का तर्क था कि वर्तमान सरकार द्वारा पिछली सरकार के फैसलों को मात्र इस कारण नहीं बदला जा सकता कि पिछली सरकार में फैसले राजनितिक प्रतिद्वंद्वी दलों द्वारा लिए गए थे।

इस मामले में सरकार का पक्ष रख रखते हुए एडवोकेट जनरल ने याचिका का विरोध किया उनका तर्क था कि संबंधित पद सिविल पद नहीं हैं और आयोग के सदस्यों की नियुक्तियां सरकार की इच्छा पर होती हैं।

कोर्ट ने अपने फैसले में वर्तमान सरकार द्वारा दिसंबर में राज्य के एससी एसटी आयोग के अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्तियों को रद्द किए जाने के आदेश को रद्द करने से इंकार कर दिया।

कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि याचिकाकर्ताओं के पास पद पर बने रहने का कोई मौलिक अधिकार नहीं है इस लिए सरकार द्वारा उनकी नियुक्तियों को रद्द किए जाने के फैसले को मनमाना या दुर्भावनापूर्ण नहीं कहा जा सकता।

कोर्ट ने कहा कि सरकार बदलने के बाद नई सरकार द्वारा सामाजिक नीतियोँ में बदलाव एक लोकतान्त्रिक प्रक्रिया का हिस्सा है।

कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ताओं की नियुक्तियां सरकार के विवेकाधिकार पर हुई थीं इस लिए ऐसी नियुक्तियों को सरकार की ख़ुशी के तहत माना जाना चाहिए। सरकार द्वारा नियुक्तियों को रद्द किए जाने के आदेश को ग़ैरक़ानूनी या अवैध नहीं कहा जा सकता।

केस टाइटल :रामहारी शिंदे व अन्य बनाम महाराष्ट्र व अन्य (Writ Petition (ST) No. 1517 of 2023)

आदेश यहाँ पढ़ें –

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