इलाहबाद हाई कोर्ट ने 41 साल पुराने मामले में निचली अदालत द्वारा आरोपियों की उम्रकैद की सजा को सही ठहराया,

इलाहबाद हाई कोर्ट ने 41 साल पुराने मामले में निचली अदालत द्वारा आरोपियों की उम्रकैद की सजा को सही ठहराया,

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  • June 16, 2023
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इलाहबाद हाई कोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण आदेश में कहा कि घटना में प्रयुक्त हथियार की बरामदगी न होना अभियोजन पक्ष के मामले को प्रभावित नहीं करता है।

कोर्ट ने मामले की सुनवाई के बाद 41 साल पुराने एक मामले में निचली अदालत द्वारा दो दोषियों की दी गई सजा को बरक़रार रखने का फैसला सुनाया है।

जस्टिस अताउर्रहमान मसूदी और जस्टिस सरोज यादव की पीठ ने दोषियों द्वारा निचली अदालत के फैसले के खिलाफ दायर आवेदन की सुनवाई के बाद यह आदेश दिया है।

क्या है पूरा मामला ?

इस मामले में अशोक कुमार ने पुलिस स्टेशन अचलगंज जिला उन्नाव में 17 जून 1982 को शिकायत दर्ज कराई थी।

शिकायतकर्ता का आरोप था कि 4 वर्ष पूर्व कुछ बदमाशों ने उसके घर में लूट की घटना को अंजाम दिया था। बाद में उसे पता चला था कि इस घटना में उसी के गांव के दो युवक राजकिशोर और राजनरायन शामिल थे।उसके बाद अक्तूबर 1981 में बदरका गांव के विजय बाजपाई ने अपीलकर्ता / दोषी राजकिशोर के एक संबंधी सत्यनारायण से एक बाग़ और 8 -9 बीघा ज़मीन खरीदी थी जिसकी देख भाल शिकायतकर्ता का पिता गौरीशंकर करता था। अपीलकर्ता / दोषी राजकिशोर ने शिकायतकर्ता के पिता को कई बार धमकी देकर उस ज़मीन से दूर रहने को कहा था लेकिन उसके पिता ने इसकी परवाह नहीं की।

इसी रंजिश के कारण जब शिकायतकर्ता अपने पिता गौरीशंकर उर्फ़ बद्री प्रसाद और ममेरे भाई राम कुमार के साथ बाजार से वापस लौटते हुए बंशलाल के खेत के पास पंहुचा तो हथियारों से लैस अपीलकर्ताओं / दोषियों करुना शंकर उर्फ़ पप्पू और राजकिशोर उर्फ़ कल्लू ने फरसा और कुल्हाड़ी लिए अपने दो अज्ञात दोस्तों के साथ मिलकर उन्हें घेर लिया। उसके बाद अपीलकर्ता / दोषी राजकिशोर ने अपने साथियों को शिकायतकर्ता के पिता को जान से मारने के लिए उकसाया। शिकायतकर्ता, उसके पिता और उसके ममेरे भाई ने वहां से भागने का प्रयास किया लेकिन उसी समय राजकिशोर ने उसके पिता पर गोली चला दी जो उसके पेट में लगी। इसके बाद शिकायतकर्ता उसका पिता और ममेरा भाई रोते हुए वहां से भागे लेकिन अपीलकर्ता / दोषी राजकिशोर ने अपने साथियों के साथ उनका पीछा किया और लल्लन दीक्षित के खेत के पास शिकायतकर्ता के पिता को अपीलकर्ताओं /दोषियों दोनों ने पहले एक एक गोली मारी जिस से शिकायतकर्ता का पिता नीचे गिर गया उसके बाद अपीलकर्ताओं / दोषियों के दो अज्ञात साथियों ने कुल्हाड़ी और फरसे से हमला कर शिकायतकर्ता के पिता की हत्या कर दी।

अपीलकर्ताओं ने कोर्ट के समक्ष आत्मसमर्पण किया था।

जांच के बाद पुलिस ने अपीलकर्ताओं / दोषियों राजकिशोर और करुना शंकर के खिलाफ आईपीसी की धारा 302 / 34 के तहत आरोप पत्र दायर किया था ।

निचली अदालत ने ट्रायल के बाद अपीलकर्ताओं को हत्या के अपराध के लिए आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी।

अपीलकर्ताओं ने निचली अदालत के फैसले को हाई कोर्ट में चुनौती दी थी।

अपीलकर्ताओं के वकील का तर्क था कि इस मामले में अपीलकर्ताओं / दोषियों के अतिरिक्त दो अन्य अज्ञात आरोपियों के नाम भी एफआई आर में शामिल थे जिनका जांच अधिकारी पता नहीं लगा सके। जांच अधिकारी द्वारा अपराध में कथित रूप से प्रयुक्त हथियार बरामद नहीं किया गया। अभियोजन पक्ष ने इस मामले में जिस दूसरे चश्मदीद गवाह को पेश किया उसका नाम एफआईआर में नहीं था ऐसे में उसकी गवाही पर भरोसा नहीं किया जा सकता है।

अपीलकर्ताओं की ओर से पेश वकील की प्रस्तुति में कहा गया कि जिस उद्देश्य से अपराध करने का आरोप लगाया गया था वह प्रयाप्त नहीं है क्योँकि ज़मीन विजय बाजपाई द्वारा खरीदी गई थी मृतक द्वारा नहीं।

दोषियों /अपीलकर्ताओं की ओर से प्रस्तुति में कहा गया कि अभियोजन पक्ष इस मामले में प्रस्तुत साक्ष्यों को संदेह से परे साबित करने में नाकाम रहा है इस लिए निचली अदालत के आक्षेपित आदेश को रद्द किया जाना चाहिए।

अभियोजन की ओर से प्रस्तुति में कहा गया कि इस मामले में दोनों दोषियों ने अपने दो अज्ञात साथियों के साथ मिलाकर खुले आम मृतक की हत्या की है।

अभियोजन का तर्क था कि अगर प्रत्यक्ष साक्ष्य मौजूद हों तो आरोपी की दोषसिद्धि के लिए अपराध में प्रयुक्त हथियार की बरामदगी ज़रूरी नहीं है। अगर घटना का चश्मदीद गवाह हो तो अपराध के उद्देश्य को साबित करना आवश्यक नहीं होता।

कोर्ट ने पक्षकारों को सुनने के बाद अपीलकर्ताओं के इस तर्क को ख़ारिज कर दिया कि घटना के दो अन्य अज्ञात आरोपियों का पता नहीं चला।

कोर्ट ने कहा कि यह तर्क आधारहीन है क्योँकि अगर जांच अधिकारी घटना के दो अन्य अज्ञात आरोपियों का पता नहीं लगा सके तो यह नहीं समझा जा सकता कि पूरी घटना झूटी है।

कोर्ट ने कहा कि “अपीलकर्ताओं के वकील का यह तर्क भी मान्य नहीं है कि अभियोजन घटना में कथित रूप से प्रयुक्त हथियार को बरामद नहीं कर सका। क्योंकि अभियोजन पक्ष के मामले को साबित करने के लिए हथियार की बरामदगी हमेशा आवश्यक नहीं होती है विशेष रूप से अगर चश्मदीद गवाह मौजूद हों। वर्तमान मामले में दो चश्मदीद गवाहों ने घटना को साबित कर दिया है। मात्र हथियार की बरामदगी न होने से अभियोजन का मामला ख़त्म नहीं होता।”

कोर्ट ने इस विषय में मेकला शिवैया बनाम स्टेट ऑफ़ आंध्रप्रदेश और कलुआ उर्फ़ कौशल किशोर बनाम स्टेट ऑफ़ राजस्थान के मामलों में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए आदेश पर भरोसा जताया।

कोर्ट ने अपीलकर्ताओं की ओर से अपराध के उद्देश्य के संबंध में दिए गए तर्क को ख़ारिज करते हुए कहा कि ” इस तर्क में कोई दम नहीं है क्योँकि जहाँ अपराध के खिलाफ प्रत्यक्ष साक्ष्य मौजूद हो उद्देश्य अपना महत्व खो देता है।”

इस संबंध में कोर्ट ने सुरेंद्र सिंह बनाम स्टेट ऑफ़ यूनियन टेरिटरी ऑफ़ चंडीगढ़ के मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर भरोसा किया।

कोर्ट ने इस मामले में अभियोजन पक्ष के पहले चश्मदीद गवाह के संबंध में अपीलकर्ताओं के इस तर्क को भी ख़ारिज कर दिया जिसमे कहा गया था कि वह एक संबधित गवाह है।

कोर्ट ने कहा कि ” यह अच्छी तरह स्थापित क़ानून है कि एक संबंधित गवाह को मात्र उसके संबंधित गवाह होने के कारण ख़ारिज नहीं किया जा सकता। एक व्यक्ति जिसका करीबी रिश्तेदार मारा गया हो वह सिर्फ दूसरों को झूठा फसाने के लिए कभी असली अपराधी को नहीं बख्शेगा।”

कोर्ट ने इस संबध में राहुल बनाम स्टेट ऑफ़ हरियाणा के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भरोसा जताया।

कोर्ट ने कहा कि रिकॉर्ड पर मौजूद साक्ष्यों से यह सिद्ध हो गया है कि दोषियों /अपीलकर्ताओं करुना शंकर और राजकिशोर ने अपने दो अन्य अज्ञात साथियों के साथ मिलकर मृतक की हत्या को अंजाम दिया है। निचली अदालत द्वारा आरोपियों की दोषसिद्धि और आजीवन कारावास की सजा का फैसला सही था।

कोर्ट ने निचली अदालत के आदेश में हस्तक्षेप करने से इंकार करते हुए दोषियों की अपील को ख़ारिज कर दिया।

Case Title: Karuna Shanker and Another V State of UP (CRIMINAL APPEAL No. – 267 of 1983)

आदेश यहाँ पढ़ें –

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