इस्लाम और ईसाई धर्म अपनाने वाले दलित को अनुसूचित जाति का दर्जा नहीं, केंद्र का सुप्रीम कोर्ट को जवाब
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- November 10, 2022
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केंद्र सरकार ने शपथ पत्र दाखिल कर सुप्रीम कोर्ट को बताया है कि मुस्लिम और ईसाई समुदायों के दलित लोगों को अनुसूचित जाति का दर्जा नहीं दिया जा सकता है।
केंद्र सरकार ने यह शपथ पत्र उस याचिका के जवाब में दाखिल किया है जिसमे मांग की गयी थी कि आरक्षण का लाभ उन दलित समुदायों को भी मिलना चाहिए जिन्होंने इस्लाम और ईसाई धर्म अपना लिया है।
याचिका में जस्टिस रंगनाथ मिश्रा की रिपोर्ट का हवाला देकर कहा गया था कि अन्य धर्मों के दलित भी उन्ही निर्बलताओं का सामना करते हैं जैसा कि हिन्दू दलित। याचिका में कहा गया था कि एस सी एस टी आयोग का भी यही विचार है।
सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस एस के कौल, जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस विक्रम नाथ की पीठ ने याचिका की सुनवाई करते हुए केंद्र से इस संबंध में शपथ पत्र दाखिल करने के लिए कहा था।
सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय द्वारा दाखिल शपथ पत्र में कहा गया है कि छुआछूत की व्यवस्था के कारण जिस आर्थिक और सामाजिक पिछड़ेपन का सामना हिन्दू धर्म के दलितों ने किया वह ऐतिहासिक रूप से इस्लाम और ईसाई धर्म में प्रचलित नहीं थीं।
शपथ पत्र में यह भी कहा गया है कि अनुसूचित जाति के जो लोग इस्लाम या ईसाई धर्म को अपनाते हैं वह सरकार द्वारा अल्पसंख्यकों को दी जाने वाली सभी योजनाओं के लाभ पाने के पात्र होते हैं।
केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट को यह भी बताया है कि इस संबंध में एक तीन सदस्यी आयोग का गठन किया गया है, जो दलित मुस्लिम और दलित ईसाई को अनुसूचित जाति में शामिल करने के लिए अध्यन कर रही है। ऐसे में याचिकाकर्ता को इस आयोग की रिपोर्ट की प्रतिक्षा करनी चाहिए।
ग़ौरतलब है कि काफी समय से पसमांदा मुस्लिम की ओर से दलित मुस्लिम को अनुसूचित जाति का दर्जा देने की मांग होती रही है।