“छद्म धर्मनिरपेक्ष मीडिया के कारण पुलिस ने प्रसिद्द हिन्दू व्यक्तियों को बेवजह आरोपी बनाया”, गुजरात के सत्र न्यायालय ने दंगे के सभी आरोपियों को किया बरी
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- June 18, 2023
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गुजरात की पंचमहल सत्र अदालत ने सोमवार को गोधरा कांड के बाद हलोल में हुए दंगों के सभी आरोपियों को बरी कर दिया।
एडिशनल सेशन जज हर्ष बालकृष्णा त्रिवेदी ने कलोल पुलिस स्टेशन में दर्ज मामलों की सुनवाई के बाद सभी आरोपियों को यह कहते हुए बरी कर दिया कि अभियोजन पक्ष आरोपियों पर लगे आरोपों के खिलाफ साक्ष्यों को साबित करने में नाकाम रहा।
क्या है मामला ?
27 फरवरी 2002 को अयोध्या से कारसेवा के बाद लौट रहे साबरमती एक्सप्रेस पर सवार 1700 कारसेवकों को जब ट्रैन गोधरा रेलवे स्टेशन से मुश्किल से 1 किलो मीटर ही लेकर आगे बढ़ी थी कि उसी समय किसी ने आपातकालीन चैन खींच कर उसे फालिया सिग्नल पर रोक दिया था जिसके बाद भीड़ ने ट्रैन पर हमला कर दिया था। ट्रैन पर पथराव के बाद भीड़ ने ट्रैन के 5 – 6 कम्पार्टमेंट को जिन में कारसेवक सवार थे पेट्रोल छिड़क कर आग के हवाले कर दिया था। इस घटना में 59 कारसेवकों की जान चली चली गई थी जबकि 40 अन्य घायल हो गए थे।
इस घटना के अगले दिन 28 फरवरी को विश्व हिन्दू परिषद् ने गुजरात बंद का आवाहन किया था जिसके बाद कलोल क्षेत्र के कुछ स्थानों को अतिसंवदेनशील घोषित कर पुलिस पेट्रोलिंग बढ़ा दी गई थी। कलोल क्षेत्र के देलोल गांव, कलोल बस स्टेशन के आस पास, डेरोल स्टेशन, कलोल बस स्टेशन के पास सड़क फालिया में उपद्रवी भीड़ ने सुबह से ही पथराव और आगज़नी शुरू कर दी थी। कई स्थानों पर घरों, वाहनों और दुकानों में आगज़नी की वारदात हुई थी। दोनों समुदायों की ओर से उपद्रवियों ने जगह जगह आगज़नी व पथराव बाज़ी की थी।
पुलिस की ओर से दर्ज शिकायत में कहा गया था कि 28 फरवरी 2002 को तड़के सवेरे हिन्दू कट्टरपंथियों की भीड़ ने देलोल गांव में एक मस्जिद को घेर कर तोड़ फोड़ के बाद उसे आग के हवाले कर दिया था। 12:30 बजे के आस पास हिन्दू कट्टर पंथियों की एक भीड़ जिसमे कम से कम 5 – 6 हज़ार लोग थे उन्होंने कलोल बस स्टेशन के पीछे झुग्गियों पर हमला कर दिया ओर घरों, दुकानों और वाहनों को आग के हवाले कर दिया। इसके बाद उपद्रवी भीड़ ने डेरोल स्टेशन के पास भी उपद्रव किया और गाड़ियों और दुकानों में आगज़नी की थी। पुलिस ने दो राउंड गोली चला कर भीड़ को तितर बितर किया था।
28 फरवरी को ही दिन के समय 1 बज कर 35 मिनट से 3 बज कर 10 मिनट के बीच कलोल बस स्टेशन के पास सड़क फालिया में सांप्रदायिक हिंसा हुई थी। जिसमे दोनों सम्प्रदायों की ओर से हथियारों से लैस भीड़ एक दूसरे पर पथराव कर रही थी और घरों, दुकानों और वाहनों को आग के हवाले कर रही थी। पुलिस ने दोनों पक्षों को तितर बितर करने के लिए आगाह किया लेकिन कट्टरपंथियों पर इसका कोई असर नहीं पड़ा और वह निरंतर उपद्रव करते रहे जिसके बाद पुलिस ने भीड़ पर काबू पाने के लिए आंसू गैस छोड़े।
पथराव में कुछ पुलिस वाले भी घायल हुए थे। फायरिंग के बाद ही भीड़ पर काबू पाया जा सका था।
शाम 4 बजे कट्टर पंथियों की भीड़ ने फिर कलोल बस स्टेशन और राधेश्याम कॉम्प्लेक्स पर पथराव करना शुरू कर दिया और दुकानों में आगज़नी की जिसके बाद पुलिस ने फायरिंग कर भीड़ पर काबू पाया और अंततः शाम 4 बज कर 10 मिनट पर पुरे कलोल शहर में कर्फ्यू लगा दिया गया था।
पुलिस ने आरोपियों को उस कट्टरपंथी भीड़ में शामिल बताया था जिसने मुस्लिम समुदाय की संपत्तियों को निशाना बनाया था।
आरोपियों के खिलाफ पर आईपीसी की धारा 143, 147, 148, 149, 302, 201, 395, 435, 436, 333, 295. 153A, 323, 504, 502, 427 के तहत और बॉम्बे पुलिस अधिनियम की धारा 135 के तहत मामला दर्ज किया गया था।
5 मार्च 2002 को पुलिस ने हिंसा की जगह पहुंच कर क्षतिग्रस्त घरों, दुकानों, वाहनों और धार्मिक स्थलों को हुए नुक्सान का पता लगाया। 5 मार्च से 30 मार्च 2002 के बीच पुलिस ने हिंसा पीड़ितों के बयान दर्ज किए थे।
आरोपियों के खिलाफ पुलिस द्वारा आरोप पत्र दायर कर जो तथ्य कोर्ट के समक्ष रखा गया उसमे कहा गया था कि “उस दिन सुबह 9:00 बजे से शाम 4:00 बजे के दौरान, साबरमती ट्रेन के डिब्बों में यात्रा कर रहे हिंदू कारसेवकों की प्रतिक्रिया में मुस्लिम विरोधी दंगे भड़क उठे। बॉम्बे पुलिस अधिनियम की धारा 37(1) (3) के तहत जिलाधिकारी की अधिसूचना का उल्लंघन करते हुए कम से कम 6 से 7 हजार की हिंदू कट्टरपंथी भीड़ ने गैरकानूनी जमावड़ा बना तलवार, धारिया, ज्वलनशील लाठियां जैसे घातक हथियारों से लैस होकर मुस्लिम समुदाय के घरों, दुकानों, केबिनों, वाहनों और धार्मिक स्थलों पर हमला किया था। लूटपाट की थी और आग लगा दी थी। देरोल स्टेशन पर उस भीड़ ने रुहुल अमीन पड़वा, हारुन अब्दुल सत्तार तसिया और यूसुफ इब्राहिम शेख को घातक हथियार से मार डाला था फिर अपराध के साक्ष्य को गायब करने की नियत से उन्हें जला डाला था। “
पुलिस के अनुसार हारून अब्दुल सत्तार तासिया को देलोल मस्जिद के पास मारा गया था। उसे मारने के बाद सिद्दीक़ इस्माइल की टिम्बर शॉप में फ़ेंक दिया गया था जो पहले ही से जल रही थी। 19 अप्रैल को जांच अधिकारी ने इस्माइल की टिम्बर शॉप से राख और हड्डी के सैंपल को इकठा कर उसे जांच के लिए वडोदरा के फॉरेंसिक लैब भेजा था जिसकी रिपोर्ट में कहा गया था कि यह संभव नहीं है कि इसकी उत्पत्ति के विषय में कोई राय दी जाए कि वह मानव का है या पशु का।
कोर्ट ने कहा कि ” इस मामले में अभियोजन ने कई साक्ष्यों को प्रस्तुत किया लेकिन पूर्वोक्त आरोपों को वह उचित संदेह से परे साबित नहीं कर सका। अभियोजन ग़ैरक़ानूनी जमावड़े द्वारा हिंसा को तो साबित करता है लेकिन आरोपियों की हिसा से सहलग्नता को स्थापित नहीं कर सका। “
कोर्ट ने कहा कि “यह सामान्य नियम है कि जब तक कॉर्पस डेलिक्टी (Corpus delicti) को स्थापित नहीं किया जाता यानी जब तक मृत शरीर नहीं मिल जाता किसी को भी दोषी नहीं ठहराया जा सकता। “
कोर्ट ने कहा कि अभियोजन पक्ष कथित पीड़ित रूहुल अमीन पड़वा, हारून अब्दुल सत्तार तसिया और यूसुफ भाई इब्राहिम शेख की हत्या को साबित करने में विफल रहा।
कोर्ट ने आदेश में कहा कि “इस मामले में कोई प्रत्यक्ष साक्ष्य नहीं है जो दर्शाता है कि हिंसा के समय विशिष्ट आरोपी के पास विशिष्ट हथियार था और उसका उपयोग कर रहा था। आरोप पत्र में दिखाए गए स्थानों पर 28/2/02 को किसी भी आरोपी के शामिल होने का कोई प्रत्यक्ष सबूत नहीं है।”
कोर्ट ने कहा कि प्रसिद्द गुजराती लेखक कन्हैयालाल मुंशी ने एक बार कहा था कि ‘अगर हर बार अंतर-सांप्रदायिक संघर्ष में प्रश्न के गुणों की परवाह किए बिना बहुसंख्यक को दोषी ठहराया जाता रहा तो पारंपरिक सहिष्णुता का झरना सूख जाएगा।”
आदेश में कहा गया कि ” इस मामले में पुलिस ने कथित अपराध के लिए आरोपियों को बेवजह फंसाया है। पुलिस ने क्षेत्र के प्रसिद्द हिंदू व्यक्तियों डॉक्टर, प्रोफेसर, शिक्षक, व्यवसायी, पंचायत अधिकारी आदि को फंसाया है जो एक हिंदू समुदाय के हैं। छद्म धर्मनिरपेक्ष मीडिया के हंगामे के कारण आरोपियों को अनावश्यक रूप से लंबे समय तक मुकदमे का सामना करना पड़ा है।”
कोर्ट ने आदेश में कहा कि “कोई प्रत्यक्ष साक्ष्य नहीं है जो इन आरोपियों में से किन्हीं पांच आरोपियों को कथित अपराध से जोड़ सके। इस मामले में दोनों समुदायों की संपत्तियों को नुकसान पंहुचा और पुलिस कर्मी मुस्लिम भीड़ के पथराव में घायल हुए। इसके बावजूद अभियोजन पक्ष धारा 149 नहीं लगा सका क्योंकि यह निश्चित नहीं है कि भीड़ में कम से कम पांच व्यक्ति एक ही उद्देश्य साझा कर रहे थे।”
Case Title : State of Gujarat V Mahesh Dinubhai Valand Case No.3,9,14, 25 of 2017
आदेश यहाँ पढ़ें-