विधेय अपराध में आरोप पत्र दाखिल हो जाना मनी लॉन्ड्रिंग केस में आरोपी की ज़मानत का आधार नहीं, सुप्रीम कोर्ट ने रद्द किया तेलंगाना हाईकोर्ट का आदेश
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- May 15, 2023
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सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में माना है कि मात्र विधेय अपराधों में आरोप पत्र दाखिल हो जाना आरोपी को मनी लॉन्ड्रिंग निरोधक अधिनियम के तहत अपराधों के संबंध में ज़मानत पर रिहा करने का आधार नहीं हो सकता है।
जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस सीटी रविकुमार की पीठ ने यह आदेश तेलंगाना हाईकोर्ट द्वारा एक आरोपी को ज़मानत पर रिहा किये जाने के आदेश के खिलाफ प्रवर्तन निदेशालय द्वारा दायर अपील पर पर सुनवाई करते हुए दिया है।
पीठ ने तेलंगाना हाईकोर्ट के आरोपी को ज़मानत दिए जाने के आदेश को रद्द कर आरोपी को एक सप्ताह के भीतर सरेंडर करने का आदेश दिया है।
क्या है मामला ?
यह मामला प्रवर्तन निदेशालय, हैदराबाद द्वारा जांच के अधीन मामले में हाईकोर्ट द्वारा एक आरोपी को ज़मानत दिए जाने से जुड़ा है।
इस मामले में 10 अप्रैल 2019 को आर्थिक अपराध शाखा, भोपाल ने 20 व्यक्तियों / कंपनियों के खिलाफ मामला दर्ज कर आईपीसी की धाराओं 120B, 420, 468, 471 और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 66 व भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 13 (2) सहित 7 (c) के तहत आरोपी बनाया था।
आरोपियों के खिलाफ प्रारंभिक जांच के बाद पता चला था कि मध्यप्रदेश जल विभाग के 1769 करोड़ रूपये के ई टेंडर में कुछ कंपनियों की निविदा को सब से कम करने के लिए छेड़खानी की गई है।
आर्थिक अपराध शाखा भोपाल ने जांच पूरी कर 4 जुलाई 2019 को इस मामले में आरोप पत्र दाखिल किया था।
आरोप पत्र के अध्यन पश्चात् पता चला था कि आरोपियों के खिलाफ मनी लॉन्ड्रिंग निरोधक अधिनियम 2002 के तहत भी अपराध का मामला बनता है। जिसके बाद प्रवर्तन निदेशालय, हैदराबाद द्वारा संबंधित आरोपियों के खिलाफ जांच शुरू कर उन्हें 19 जनवरी 2021 को अरेस्ट किया गया था।
इस मामले में आरोपी ने हाईकोर्ट के समक्ष ज़मानत के लिए अपील दायर की थी। हाई कोर्ट ने आरोपी को ज़मानत पर रिहा करने का आदेश दिया था।
अपीलकर्ता का पक्ष:-
प्रवर्तन निदेशालय के पक्ष में एडिशनल सॉलिसिटर जनरल केएम नटराज ने अपनी प्रस्तुति में हाईकोर्ट द्वारा आरोपी की ज़मानत को ग़लत ठहराया था।
नटराज ने कहा कि हाई कोर्ट द्वारा आरोपी को ज़मानत पर रिहा करने के आदेश में मनी लॉन्ड्रिंग निरोधक अधिनियम 2002 की धारा 45 की अनदेखी हुई है।
प्रवर्तन निदेशालय की प्रस्तुति में यह भी कहा गया कि हाई कोर्ट ने मनी लॉन्ड्रिंग निरोधक अधिनियम 2002 के तहत अनुसूचित अपराधों की गंभीरता पर भी विचार नहीं किया।
प्रस्तुति में कहा गया कि हाईकोर्ट ने आरोपी को मात्र इस आधार पर ज़मानत पर रिहा करने का आदेश पारित कर दिया कि इस मामले में जांच पूरी हो गई है और आरोप पत्र दाखिल हो गया है जबकि वास्तविकता यह है कि इस मामले में प्रवर्तन निदेशालय की जांच चल रही है। ऐसे में यह कहना ग़लत होगा कि जांच पूरी हो गई है।
प्रतिवादी का पक्ष:-
प्रतिवादी की ओर से पेश वकील ने अपनी प्रस्तुति में प्रवर्तन निदेशालय की अपील का विरोध करते हुए मामले के तथ्यों और परिस्थितियों के आधार पर हाई कोर्ट के आरोपी को ज़मानत पर रिहा करने के आदेश की सराहना की।
प्रस्तुति में कहा गया कि वर्तमान मामले में जहां तक संबंधित प्राथमिकी का संबंध है अर्थात विधेय अपराधों के लिए अन्य आरोपियों को बरी किया जा चुका है।
प्रतिवादी की प्रस्तुति में कहा गया कि इस मामले में जांच पूरी हो चुकी है और आरोप पत्र दाखिल कर दिया गया है ऐसे में प्रतिवादी 1 (आरोपी) का हाईकोर्ट द्वारा ज़मानत पर रिहा किये जाने का आदेश ठीक है।
प्रस्तुति में यह भी कहा गया कि चूंकि प्रतिवादी 1 (आरोपी) मार्च 2021 से ज़मानत पर है ऐसे में इस स्टेज पर इस कोर्ट द्वारा हाईकोर्ट के आदेश में हस्तक्षेप नहीं किया जाना चाहिए।
कोर्ट ने माना कि हाईकोर्ट ने आक्षेपित आदेश द्वारा आरोपी को ज़मानत देते समय मनी लॉन्ड्रिंग निरोधक अधिनियम 2002 की धारा 45 की कठोरता पर विचार नहीं किया।
कोर्ट ने माना कि आरोपी को ज़मानत देते समय हाईकोर्ट ने आरोपों की प्रकृति और मनी लॉन्ड्रिंग निरोधक अधिनियम के कथित अपराधों की गंभीरता पर बिल्कुल विचार नहीं किया।
कोर्ट ने कहा कि आरोपों की प्रकृति को देखते हुए कहा जा सकता है कि यह मनी लॉन्ड्रिंग के बेहद गंभीर आरोपों की श्रेणी में आते है जिनकी गहन छानबीन करने की आवश्यकता है।
कोर्ट ने प्रतिवादी की प्रस्तुति में दिए गए तर्क को भी नकार दिया जिसमे कहा गया था कि जहाँ तक विधेय अपराधों का संबंध है इस मामले में अन्य आरोपियों को बरी किया जा चुका है।
कोर्ट ने इस तर्क को यह कह कर ख़ारिज कर दिया कि प्रतिवादी 1 (आरोपी) के खिलाफ अनुसूचित अपराधों के संबंध में मनी लॉन्ड्रिंग निरोधक अधिनियम के तहत जांच चल रही है और अन्य आरोपियों के बरी होने को प्रतिवादी 1 के खिलाफ चल रही जांच को रोकने का आधार नहीं बनाया जा सकता।
कोर्ट ने कहा कि ऐसा लगता है कि हाईकोर्ट ने प्रतिवादी 1 को यह मान कर ज़मानत दे दी है कि इस मामले में उसके खिलाफ आरोप पत्र दाखिल किया जा चुका है इस लिए जांच पूरी हो गई है। जबकि हाईकोर्ट प्रवर्तन निदेशालय की प्रतिवादी 1 (आरोपी) के खिलाफ अनुसूचित अपराधों के संबंध में मनी लॉन्ड्रिंग निरोधक अधिनियम के तहत चल रही जांच की तरफ ध्यान देने में विफल रहा।
कोर्ट ने माना कि विधेय अपराधों की जांच और मनी लॉन्ड्रिंग निरोधक अधिनियम के तहत प्रवर्तन निदेशालय द्वारा की जा रही अनुसूचित अपराधों के लिए जांच अलग अलग हैं। इसलिए हाईकोर्ट ने आरोपी को ज़मानत देते समय अप्रासंगिक विचार को ध्यान में रखा।
कोर्ट ने उपरोक्त तथ्यों और कारणों से प्रवर्तन निदेशालय की अपील को अनुमति देते हुए हाईकोर्ट के आक्षेपित आदेश को रद्द करने करने का आदेश दिया।
केस : प्रवर्तन निदेशालय बनाम बनाम आदित्य त्रिपाठी, क्रिमिनल अपील संख्या 1401 व 1402 / 2023
पूरा आदेश यहाँ पढ़ें :-