शिवसेना बनाम शिवसेना का मामला : सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपाल और स्पीकर को ठहराया ग़लत लेकिन इस्तीफे के बाद उद्धव ठाकरे सरकार को बहाल करने से किया इंकार

शिवसेना बनाम शिवसेना का मामला : सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपाल और स्पीकर को ठहराया ग़लत लेकिन इस्तीफे के बाद उद्धव ठाकरे सरकार को बहाल करने से किया इंकार

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  • May 11, 2023
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सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को शिवसेना मामले में महाराष्ट्र के पूर्व राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी का एकनाथ शिंदे गुट के 34 विधायकों के अनुरोध पर फ्लोर टेस्ट बुलाने के फैसले को ग़लत ठहराया है।

कोर्ट ने माना कि तत्कालीन मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे सदन का विश्वास खो चुके थे यह निष्कर्ष निकालने के लिए कोश्यारी के पास पर्याप्त निष्पक्ष तथ्य नहीं थे।

इस के बावजूद कोर्ट ने माना कि “क्यूंकि उद्धव ठाकरे ने फ्लोर टेस्ट का सामना न कर त्यागपत्र दे दिया था इस लिए यथा स्थिति को लागु नहीं किया जा सकता।”

हालांकि कोर्ट ने राज्यपाल द्वारा ठाकरे सरकार के अल्पमत में होने के संदेह को रेखांकित किया और कहा कि कुछ विधायकों का असंतोष फ्लोर टेस्ट कराए जाने के लिए प्रयाप्त नहीं था। इस लिए राज्यपाल का यह मानना कि उद्धव ठाकरे के पास बहुमत नहीं है ग़लत था।

राज्यपाल के किसी व्यक्ति को सरकार बनाने के लिए निमंत्रण देने के संवैधानिक अधिकार का दायरा क्या है? इस प्रश्न पर कोर्ट का कहना था कि महाराष्ट्र के राज्यपाल द्वारा शिवसेना बाग़ी गुट के नेता एकनाथ शिंदे को सरकार बनाने का निमंत्रण और उन्हें मुख्यमंत्री के पद की शपथ दिलाए जाने का फैसला तो सही था लेकिन राज्यपाल को राजनीतिक क्षेत्र में प्रवेश और अंतर पार्टी विवादों में पड़ने का कोई अधिकार नहीं है। राज्यपाल इस आधार पर कार्यवाई नहीं कर सकते थे कि कुछ सदस्य शिवसेना छोड़ना चाहते थे।

चीफ जस्टिस की अगुवाई वाली 5 जजों की संवैधानिक पीठ ने सुप्रीम कोर्ट के 2016 में नबाम रेबिया मामले में दिए गए आदेश में निर्धारित स्पीकर की शक्ति से संबंधित मुद्दे को एक बड़ी पीठ के समक्ष भेज दिया।

पीठ ने इस मामले में बड़ी पीठ के समक्ष निर्णय लेने के लिए यह प्रश्न रखा है कि क्या स्पीकर को हटाए जाने का नोटिस उसे सदस्यों को अयोग्य घोषित करने का निर्णय देने से रोकता है ?

कोर्ट ने शिंदे गुट द्वारा भारत गोगावले की पार्टी व्हिप के पद पर नियुक्ति को अवैध क़रार दिया। कोर्ट ने माना कि विधायक दल (अर्थात सदन में किसी विशेष राजनीतिक दल का बहुमत ) पार्टी व्हिप नियुक्त करने के लिए सक्षम निकाय नहीं है।

पीठ के समक्ष मामले की सुनवाई के दौरान मुख्य रूप से जो सवाल थे :

1 – क्या संविधान के अनुच्छेद 226 और 32 के तहत अयोग्यता की कार्यवाही पर फैसला लिया जा सकता है?

2 – उस स्थिति में जबकि स्पीकर का निर्णय न हो, क्या कोर्ट किसी सदस्य को उसके कार्यों के आधार पर अयोग्य मान सकता है ?

3 – यदि सदस्यों के खिलाफ अयोग्यता के लिए दायर याचिकाएं लंबित हों तो सदन की कार्यवाही की स्थिति क्या होगी?

4 – क्या दलों के आंतरिक मामले न्यायिक समीक्षा के अधीन हैं? यदि हैं तो इसका दायरा क्या है ?

5 – सरकार बनाने के लिए आमंत्रित करने की राज्यपाल की शक्ति क्या है ? क्या इसकी न्यायिक समीक्षा की जा सकती है ?

6 – दलों के भीतर एकपक्षीय विभाजन को रोकने में चुनाव आयोग की शक्तियों का दायरा क्या है ?

7 – विधायक दल के नेता और व्हिप के निर्धारण में स्पीकर की शक्ति का दायरा क्या है ?

पांच जजों की संवैधानिक पीठ ने इस मामले की सुनवाई 14 फरवरी 2023 को शुरू की थी। पीठ ने 16 मार्च को सुनवाई पूरी कर आदेश सुरक्षित रख लिया था।

चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस एमआर शाह, जस्टिस हिमा कोहली, जस्टिस कृष्ण मुरारी और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की संविधान पीठ ने इस मामले में दायर याचिकाओं पर फैसला सुनाया है।

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