पॉक्सो अधिनियम की धारा आकर्षित करने के लिए माता पिता ने बढ़ा चढ़ा कर मामले को पेश किया, कलकत्ता हाईकोर्ट ने पॉक्सो के दोषी की सजा को किया रद्द

पॉक्सो अधिनियम की धारा आकर्षित करने के लिए माता पिता ने बढ़ा चढ़ा कर मामले को पेश किया, कलकत्ता हाईकोर्ट ने पॉक्सो के दोषी की सजा को किया रद्द

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  • May 8, 2023
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कलकत्ता हाई कोर्ट ने पॉक्सो अधिनियम के तहत एक व्यक्ति की दोषसिद्धि को इस आधार पर रद्द कर दिया कि अभियोजन पक्ष यह साबित करने में नाकाम रहा कि पॉक्सो अधिनियम में शामिल यौन मंशा अभितुक्त के कृत्य में शामिल थी।

जस्टिस तीर्थंकर घोष की एकल पीठ ने निचली अदालत के आदेश को रद्द कर दिया जिसमे पॉक्सो अधिनियम की धारा 8 के तहत आरोपी को दोषी ठहराते हुए 3 साल की कारावास और 5 हज़ार का जुर्माना लगाया था।

पीठ ने यह कह कर निचली अदालत के आदेश को रद्द कर दिया कि नाबालिग के माता पिता ने घटना को बढ़ा चढ़ा कर प्रस्तुत किया ताकि पॉक्सो अधिनियम की धाराओं को आकर्षित किया जा सके।

इस मामले में अपीलकर्ता के खिलाफ नाबालिग पीड़िता के पिता ने 26 जून 2016 को चंडीताला पुलिस स्टेशन में मामला दर्ज कराया था।

पीड़िता के पिता ने शिकायत दर्ज कर अपीलकर्ता पर आरोप लगाया था कि 26 जून 2016 को जब उसकी 13 साल की बेटी पढ़ कर शाम 5 :30 बजे घर लौट रही थी तो आरोपी उसके सामने आकर खड़ा हो गया। उसने पीड़िता को नीचे उतार दिया और ग़लत इरादे से उसके चेहरे को ढक दिया।

पीड़िता के पिता द्वारा 26 जून 2016 को चंडीताला पुलिस स्टेशन में दर्ज शिकायत के आधार पर आरोपी के खिलाफ पॉक्सो अधिनियम की धारा 11 और 12 व आईपीसी की धारा 354 के तहत मामला दर्ज किया गया था।

अभियोजन ने इस मामले में 6 गवाहों पर भरोसा किया था। जिसमे पीड़िता और उसके माता पिता, मेडिकल करने वाला डॉक्टर, संबंधित पुलिस स्टेशन का सुब इंस्पेक्टर और जांच अधिकारी शामिल थे।

जाँच के बाद निचली अदालत ने आरोपी को पोक्सो अधिनियम के तहत दोषी ठहरा 25 जुलाई 2022 को 3 साल की कारावास सहित 5 हज़ार रूपये जुर्माने का आदेश पारित किया था।

अपीलकर्ता के पक्ष में उसके वकील ने अपनी प्रस्तुति में कहा कि इस मामले में पेश साक्ष्यों के आधार पर अपीलकर्ता के खिलाफ पॉक्सो अधिनियम के तहत मामला नहीं बनता और अपीलकर्ता को झूठा फसाया गया है।

अपीलकर्ता के वकील ने कहा कि अभियोजन पक्ष के गवाहों के बयान में विरोधाभास है और मामले को बढ़ा चढ़ा कर प्रस्तुत किया गया जो पीड़िता के मामले का समर्थन नहीं करते। जिन कारणों से अपीलकर्ता को दोषी ठहराया गया है वह मामले के रिकॉर्ड में उपलब्ध नहीं हैं।

पीड़िता के पक्ष में वकील ने अपनी प्रस्तुति में कहा कि इस मामले में दर्ज की गई शिकायत पॉक्सो अधिनियम की धारा 7 के प्रावधानों के तहत अपराध बनाने के लिए संतुष्ट है।

पीड़िता के पक्ष में वकील ने कोर्ट का ध्यान, पॉक्सो अधिनियम की धारा 7 के दूसरे भाग जो यौन कृत्य को परिभाषित करता है की ओर आकर्षित किया और अपनी प्रस्तुति में कहा कि इस मामले में वाक्यांश “यौन इरादे से कोई अन्य कार्य करता है जिसमें प्रवेश के बिना शारीरिक संपर्क शामिल है” संतुष्ट है और इस तरह दोषसिद्धि का आदेश और सजा में हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता है।

पीड़िता की ओर उसके वकील ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा अटॉर्नी जनरल फॉर इंडिया बनाम सतीश व अन्य 2022 , एडिशनल डिस्ट्रिक्ट एंड सेशन जज X बनाम रजिस्ट्रार जनरल, हाईकोर्ट ऑफ़ मध्यप्रदेश व अन्य 2015, गनेशन बनाम स्टेट रेप्रेसेंटेड बाई इट्स इंस्पेक्टर ऑफ़ पुलिस 2020 के मामलों में दिए गए आदेशों का हवाला देकर कहा कि यह कानून का निर्धरित प्रस्ताव है कि यदि पीड़िता का बयान भरोसेमंद, बेदाग और उत्कृष्ट गुणवत्ता वाला पाया जाता है तो उसकी एक मात्र गवाही के आधार पर दोषसिद्धि की जा सकती है।

कोर्ट ने पीड़िता के सीआरपीसी की धाराओं 161 ओर 164 के तहत बयानों ओर ट्रायल कोर्ट में उसके बयान को संज्ञान में लिया।
कोर्ट ने पाया कि पीड़िता और मामले के अन्य गवाहों के बयान में विरोधाभास है।

कोर्ट ने कहा कि पीड़िता के माता पिता द्वारा दिए गए सुबूतों के आकलन से पता चलता है कि उन्होंने अपने बयानों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया है ताकि पॉक्सो अधिनियम के प्रावधानों को आकर्षित किया जा सके और यही कारण है कि शिकायत में पीड़िता के पिता द्वारा यह आरोप लगाया गया था कि आरोपी ने गलत इरादे से पीड़िता का चेहरा ढकने की कोशिश की और बाद में अदालत के सामने गवाही देते हुए उसने पीड़िता के पैंट को नीचे खींचने और शरीर के संवेदनशील हिस्सों को छूने के बारे में कहा था। ऐसा ही बयान पीड़िता की माँ ने दिया था।

कोर्ट ने पीड़िता और उसके माता पिता द्वारा अपीलकर्ता के खिलाफ लगाए गए आरोपों की प्रकृति में अंतर पाया।

कोर्ट ने माना कि पॉक्सो अधिनियम और उस से संबंधित अपराधों में पीड़िता का बयान महत्वपूर्ण होता है।

पीठ ने इस मामले में पीड़िता के साक्ष्य को महत्वपूर्ण मानते हुए कहा कि “मैं खुद को इस बात से संतुष्ट करने में असमर्थ हूं कि क्या स्पर्श या शारीरिक संपर्क से कोई मामला बनता है जो पॉक्सो अधिनियम की धारा 11 के तहत संदर्भित यौन इरादे के आधार को आकर्षित करता है।”

कोर्ट ने इस मामले में पीड़िता और उसके माता पिता के बयानों में विरोधाभास पाया और माना कि पीड़िता के माता पिता ने अपने बयानों को बढ़ा चढ़ा कर पेश किया ताकि अपीलकर्ता के खिलाफ पॉक्सो अधिनियम के तहत धाराओं को आकर्षित किया जा सके।

कोर्ट ने माना कि निचली अदालत द्वारा अपीलकर्ता की दोषसिद्धि में हस्तक्षेप किया जा सकता है इस लिए निचली अदालत द्वारा अपीलकर्ता की दोषसिद्धि के आदेश को रद्द किया जाता है।

पूरा आदेश यहाँ पढ़ें :-

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