मरने से पूर्व दिया गया बयान दोषसिद्धि का एक मात्र आधार हो सकता है बशर्ते वह सुसंगत हो: कलकत्ता हाईकोर्ट

मरने से पूर्व दिया गया बयान दोषसिद्धि का एक मात्र आधार हो सकता है बशर्ते वह सुसंगत हो: कलकत्ता हाईकोर्ट

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  • April 28, 2023
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कलकत्ता हाईकोर्ट ने हाल ही मे हत्या से जुड़े एक मामले मे मरने से पूर्व दिए गए बयान को संदिग्ध मानते हुए एक दोषी की दोषसिद्धि को ख़ारिज करने का आदेश पारित किया है।

जस्टिस जोयमाल्या बागची और जस्टिस अजय कुमार गुप्ता की खंडपीठ ने हत्या से जुड़े एक मामले की सुनवाई करते हुए यह आदेश दिया है।

पीठ ने अपने आदेश मे माना कि ” मरने से पूर्व दिया गया बयान दोषसिद्धि का एक मात्र आधार हो सकता है बशर्ते वह सुसंगत हो 
जब अभियोजन पक्ष के गवाहों के अनुसार मरने से पूर्व दिए गए बयान की सामग्री अपीलकर्ता की भूमिका की तुलना में एक दूसरे से भिन्न हो, तो उसके खिलाफ अपराध का पता लगाने के लिए ऐसे सबूतों पर भरोसा करना खतरनाक होगा। “

पीठ निचली अदालत के एक आदेश को चुनौती देने वाली अपील पर सुनवाई कर रही थी जिसमे अप्रैल 2019 मे अपीलकर्ता को आईपीसी की धाराओं 302 और 34 के तहत दोषी पाए जाने पर आजीववन कारावास और 5 हज़ार रूपये के जुर्माने की सजा दी गई थी।

क्या है मामला ?

इस मामले मे अपीलकर्ता पर आरोप था कि 19 नवंबर 2008 को जब पीड़ित अपने बेटे की दवा खरीदने के लिए बाजार गया था तो भोंदुल उर्फ़ सुभाष घोष ने अपीलकर्ता और दो अन्य अज्ञात लोगों के साथ मिलकर पीड़ित के दाएं कान पर हमला कर दिया था। पीड़ित ने स्थानीय पुलिस स्टेशन जा कर पुलिस को बताया था कि अपीलकर्ता व दो अन्य लोगों ने उस पर हमला किया है। पीड़ित को स्टेट हॉस्पिटल ले जाया गया था। पीड़ित की हालत ज़्यादा ख़राब हो जाने पर उसे जिला अस्पताल मे शिफ्ट किया जा रहा था। जिला अस्पताल पहुंचने पर पीड़ित की मृत्यु हो गई थी।

पीड़ित की मौत के बाद भोंदुल उर्फ़ सुभाष, अपीलकर्ता व दो अन्य के खिलाफ मामला दर्ज किया गया था।

जांच के बाद पुलिस ने चार्जशीट मे अपीलकर्ता व भोंदुल को आईपीसी की धाराओं 302 34 के तहत आरोपी बनाया था।

ट्रायल के दौरान आरोपी भोंदुल की मृत्यु हो गई थी।

निचली अदालत ने ट्रायल के बाद अपीलकर्ता को दोषी ठहराते हुए आजीवन कारावास और 5 हज़ार रूपये के जुर्माने की सजा सुनाई थी।

अपीलकर्ता ने निचली अदालत के आक्षेपित आदेश को हाईकोर्ट मे चुनौती दी थी।

अपीलकर्ता के पक्ष का कहना था कि इस मामले मे कोई चश्मदीद गवाह नहीं था। अपीलकर्ता के वकील का तर्क था कि मामले मे पेश गवाहों के बयानात अपीलकर्ता की भूमिका को लेकर एक दूसरे से भिन्न थे।

पीठ ने माना कि अभियोजन का पक्ष पूरी तरह पीड़ित द्वारा मरने से पूर्व दिए गए मौखिक बयान पर निर्भर है। पीठ ने इस मामले मे पेश गवाहों के बयानात मे भिन्नता पाई थी।

पीठ ने अपने आदेश मे कहा कि मृत्यु पूर्व दिया गया बयान दोषसिद्धि का एक मात्र आधार हो सकता है बशर्ते वह सुसंगत हो। जब अभियोजन पक्ष के गवाहों के अनुसार मृत्यु पूर्व दिए गए बयान की सामग्री अपीलकर्ता की भूमिका की तुलना में एक दूसरे से भिन्न हो, तो उसके खिलाफ अपराध का निष्कर्ष निकालने के लिए ऐसे सबूतों पर भरोसा करना खतरनाक होगा।

पीठ ने अपीलकर्ता को संदेह का लाभ देते हुए निचली अदालत द्वारा उसकी दोषसिद्धि को ख़ारिज करने का आदेश दिया है।

केस : परिमल सरकार बनाम स्टेट ऑफ़ वेस्ट बंगाल

पूरा आदेश यहाँ पढ़ें :

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